शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

ऑटो रिक्शा से इंजीनियर और बिल्डर तक का सफ़र --------------ललित शर्मा

एक नवयुवक के मन में इच्छा होती है कि वह इंजीनियर बने। खूब नाम और दाम कमाए,उसे सफ़ल व्यक्ति के रुप में जाना जाए। लेकिन विपन्नता कहीं न कहीं आड़े आती है। पढाई के रास्ते में रोड़े बन कर बाधाएं सामने आती हैं। बाधाओं को पार भी करना पड़ता है। सोच बुलंद है निशाना सामने। बस आवश्यकता है सामर्थ्य और आत्म बल की। वह आत्मबल जुटाता है। सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल जाता है। उसका चयन मौलाना अब्दुल कलाम इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नालाजी कॉलेज भोपाल में हो जाता है, लेकिन धन अभाव में वह कॉलेज में प्रवेश नहीं ले पाया। फ़िर जी ई सी रायपुर में प्रवेश लेता है, आर्किटेक्चर (वास्तु कला) की पढाई करता है। लेकिन यहां भी फ़ीस के लिए धन चाहिए। इस संकट से वह घबराता नहीं, इससे उबरने के लिए के लिए रास्ता ढूंढता है।

वह बैंक से ॠण लेकर एक मालवाहक ऑटो खरीदता है। उसका सोचना था कि ड्रायवर रख कर ऑटो चलाने से कुछ आमदनी हो जाएगी। लेकिन ड्रायवर भी काम के समय नहीं मिलते थे। वह मुंह पर कपड़ा, चश्मा और टोपी लगाकर चेहरा छुपाता है, कहीं लोग यह न बोले कि इंजीनियरिंग कॉलेज का लड़का ऑटो चलाता है। कॉलेज के धनाड्य सहपाठियों के बीच हंसाई न हो। खुद ऑटो चलाने से आमदनी शुरु हो जाती है जिससे वह कॉलेज की फ़ीस पूरी करता है। एक दिन उसका सपना पूरा होता है। वह आर्किटेक्ट बन कर जी ई सी (गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज) से वास्तुकार की डिग्री लेकर बाहर निकलता है। अब खुला आसमान उसके सामने था। वह कहता है कि कोई भी काम छोटा काम नहीं होता। मेहनत और लगन से सब संभव है और उसने कर दिखाया।

राधा विनोद कोइजाम जब मणिपुर के मुख्य मंत्री थे तब वे मुझे जार्ज साहब के यहाँ मिलते रहते थे और भी अन्य कार्यक्रमों में  भी मुलाकात होती थी, एक दिन उन्होने मणिपुर आने का निमंत्रण दिया। वहां एम आई सिंग ने मुझे बताया कि मणिपुर की राजधानी इम्फ़ाल में भी ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट लड़के मुंह छुपा कर पढाई जारी रखने के लिए रिक्शा चलाने का काम करते हैं,  प्रतियोगी परीक्षाओं की पढाई के लिए रुपए जमा करते हैं, और इन्ही में से कई अधिकारी भी बने हैं। कहीं अधिकारी बनने के बाद पहचाने नहीं जाएं इसलिए मुंह को ढक लेते हैं। इस नवयुवक की कहानी जान कर मुझे मणिपुर के युवाओं की याद आ गयी।जब इसने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया था तो उसके सामने सपना था, आर्किटेक्ट बनकर बिल्डिंग निर्माण के व्यवसाय में कदम रखने का।

उसने एक लक्ष्य निर्धारित किया और इस दिशा में कदम रखा। यहाँ पर सफ़लता उसका इंतजार कर रही थी और सफ़ल भी हुआ, अपने लक्ष्य को उसने प्राप्त किया। अगर आत्मबल हो और कुछ करने की तमन्ना हो तो सफ़लता भी उसका वरण करती है। आज वह रायपुर शहर के बिल्डरों में अपना नाम दर्ज करा चुका है।समाज सेवा में भी सुमीत दास अग्रणी है, पनिका समाज अन्य समाज के उत्थान के लिए कार्य करते ही रहता है। जिसने विपन्नता देखी है वही किसी गरीब का दर्द समझ सकता है। समाज के सभी तबकों से सीधा सम्बंध स्थापित करना इसकी बड़ी उपलब्धि है। इसी के फ़ल स्वरुप इनके छोटे भाई अमित दास संतोषी नगर से पार्षद एवं एम आई सी मेम्बर भी हैं। सामाजिक कार्यों में भी इनकी सक्रीय हिस्सेदारी है।

यह कोई फ़िल्मी कहानी नहीं है। छोटे से अर्से में सफ़लता के सोपान पर चढने वाले सुमीत दास छत्तीसगढ अंचल के उस समाज से वास्ता रखते हैं जिसे पनिका समाज ( मानिक पुरी समाज) कहते हैं। कबीर दास को मानने वाला यह समाज आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं शैक्षणिक रुप से काफ़ी पिछड़ा हुआ है। इनका पुस्तैनी व्यवसाय कपड़ा बनाने का होता था। ये मोटा कपड़ा बनाते थे। मशीनीकरण होने के बाद अन्य जातियों ने कोसे (सिल्क) का पतला कपड़ा बनाना शुरु कर दिया लेकिन पनिका समाज कबीर दास का अनुयायी था, इसलिए कोसे को बनाने के लिए उसके कीड़े को मारना पड़ता है जिससे हिंसा होती है। इन्होने कपड़ा बनाने का काम ही बंद कर दिया। जीविकोपार्जन के लिए मजदूरी करना प्रारंभ कर दिया। 

सांसद चरण दास महंत एवं पीपली लाईव का हीरो नत्था दास मानिकपुरी भी इसी समाज से आते हैं।जब इस समाज का एक लड़का अपने उद्यम से स्वालम्बी बनकर स्वाभिमान कायम रखते हुए सफ़लता के शिखर तक पहुंचने की कोशिश करता है यह काबिल-ए-तारीफ़ है। आज शहर में कृष्णा बिल्डकॉन जाना पहचाना नाम है। सुमीत दास एक सफ़ल बिल्डर और आर्किटेक्ट है। इसमें कोई संदेह नहीं है। मेरा इस पोस्ट लिखने का कारण यह है कि मेरे देश के नव जवान सुमीत दास जैसे उद्यमी नवयुवक से प्रेरणा लें। अगर दृढ इच्छा शक्ति है तो सफ़लता अवश्य कदम चुमती है। आगे ये विधायक बनकर जनता की सेवा करना चाहते हैं।

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

हाई ब्लड प्रेशर-सलमान खान-एक दिन के वी आई पी---------ललित शर्मा

महामहिम राज्य पाल दिनेश नंदन सहाय
छत्तीसगढ राज्य का निर्माण 1 नवम्बर 1999 को हुआ, नए राज्य के उद्घाटन समारोह में मुझे भी शिरकत करने का मौका मिला। दिनेश नंदन सहाय जी को छत्तीसगढ का राज्यपाल बनाया गया था। गाहे-बगाहे वे मुझे चर्चा करने के लिए राज भवन बुला लेते थे। सरल और सहृदय श्री दिनेश नंदन सहाय जी के कार्यकाल में केन्द्र सरकार से प्रदेश में बहुत सारी योजनाओं शुभारंभ हुआ। रेल सुविधाओं का विस्तार हुआ। इसके पश्चात 9 नवम्बर को मुझे उत्तराखंड राज्य के उद्घाटन समारोह में शिरकत करने का मौका मिला। देहरादून में भव्य समारोह का आयोजन हुआ। मुझे गर्व है कि मैं दो नए राज्यों के उदय का साक्षी बना। एतिहासिक पलों का भागीदार बना।
1 नवम्बर को प्रतिवर्ष छत्तीसगढ राज्य के जन्मदिन पर राज्योत्सव मनाया जाता है। सरकार से निमंत्रण तो समय पर पहुंच जाता है लेकिन 1999 के पश्चात किसी अन्य समारोह में उपस्थित होने का मौका ही नहीं मिल पाया। इस वर्ष राज्योत्सव दीपावली का त्यौहार होने के कारण 26 नवम्बर से प्रारंभ हो गया। कार्यक्रम में सलमान खान के आने की घोषणा भी की गयी थी। इससे अंदाजा लग रहा था कि भीड़ कुछ ज्यादा ही होने लगी है। उदय को जब पता चला सलमान खान आने वाले हैं तो उसने मुझ से कहा कि वो भी जाएगा सलमान खान को देखने के लिए। लेकिन मुझे कार्यक्रम स्थल की दुश्वारियों का अंदाजा था इसलिए उसे मना कर दिया।
हर भारतीय की इच्छा होती है कि गणतंत्र दिवस का परेड समारोह देखे। मेरी भी यही इच्छा थी। एक बार अवसर मिल ही गया। लेकिन 5 घंटे इस समारोह में बैठना मेरे लिए भारी पड़ गया था। इसलिए तब से मैं विशेष सुरक्षा व्यवस्था वाले कार्यक्रमों में जाने से बचता हूँ, कुछ मित्रों के कारण राज्योत्सव के उद्घाटन समारोह में जाने का मन बनाया और पहुंच या। अभूतपूर्व सुरक्षा का इंतजाम था। पास संस्कृति का खेल यहां भी देखने मिला। पीले कार्ड धारी को वी आई पी माना गया। इस पास को कलेक्टर ने जारी किया था। एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि प्रदेश के मुख्य सचिव के द्वारा भेजे गए आमंत्रण-पत्र की गरिमा और महत्व अधिक है कि कलेक्टर द्वारा बनाए गए वी आई पी की। 
मुख्य सचिव के निमंत्रण पत्र में तो यह भी जाहिर नहीं था कि कार्ड उद्घाटन समारोह का है समापन का। दो स्टेज बनाए गए एक पर उद्घाटन कार्यक्रम होना था तथा दूसरे पर सांस्कृतिक कार्यक्रम। चारों तरफ़ पुलिस का पहरा था जैसे किले बंदी कर रखी हो। जो एक बार अंदर आ गया उसका बाहर जाना मुस्किल था। मुख्य स्टेज के सामने जहाँ बैठने की व्यवस्था थी वहाँ उच्चाधिकारियों के बीबी-बच्चों ने कब्जा कर रखा था। उन्हे सलमान खान को ज्यादा नजदीक से देखना था। कई दिग्गज नेता भी वहां स्थान नहीं पा सके।
राज्योत्सव आयोजन से जुड़े मंत्री से लेकर अधिकारी कर्मचारी तक फ़ुल टेंशन में दिखे। सबका ब्लड प्रेशर हाई था। जब तक दाब न हो तो कार्यक्रम सफ़ल कैसे हो सकता है? आयोजन सकुशल सम्पन्न हो जाए इसकी चिंता सभी के माथे पर दिख रही थी। उद्घाटन कार्यक्रम से जुड़ी सभी चीजें व्यवस्थित रुप से दिखाई दे रही थी। संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जी 5 बजे से ही व्यवस्था देखने पहुंच चुके थे। उनकी फ़ौज कार्यक्रम स्थल पर व्यवस्था बना रही थी। संस्कृति विभाग के अधिकारी कर्मचारी भी मुस्तैदी से तैनात थे।
मेरी पीछे की कुर्सियों पर एक महिला दल पहुंचा, सलमान खान को नजदीक से देखने चाह उनके चेहरे से प्रगट हो रही थी। एक ने कहा कि अरे क्या बताऊं सलमान ने मुझे फ़ोन करके बुलाया है तब आई हूँ,। तभी मोबाईल की घंटी बजी- बात शुरु हूई, एक महिला गुजराती में बोली- हूं वी आई कुर्सी मा बैठी छूँ, मने, सलमान खाने मोबाईल करी बोलायु एटले हूँ आईवी। एक दिन का वी आई पी बनना भी कितना उत्साह जनक होता है, चेहरे की रौनक ही बदल देता है। सहेलियों और रिश्ते दारों को बताना पड़ता है कि आज वी आई पी बन गए।
गेट पर ड्युटी कर रहा एक थानेदार भी चिंतित दिख रहा था, दुसरे से कह रहा था कि बीबी बच्चे आ रहे हैं उन्हे गेट पर रोक रखा है। फ़लाँ साहब वहां ड्युटी में हैं।अरे उन्हे अंदर लाने की व्यवस्था करो। उसकी चिंता जायज थी क्योंकि बीबी के क्रोध के सामना करना बहुत ही कठिन है। कम-ओ-बेश वहाँ ड्युटी कर रहा हर कर्मचारी अधिकारी इसी समस्या से जूझ रहा था। इधर राज्योत्सव की व्यवस्था करे कि अपने परिवार को सामने का स्थान दिलाए। कठिन परीक्षा की घड़ी थी। जिसमें उत्तीर्ण होना भी जरुरी था नहीं तो पुरुषार्थ पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता।
लगभग 8 बजे कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। नवोदित तीनों राज्य (छत्तीसगढ, उत्तराखंड, झारखंड) मुख्यमंत्री रमन सिंग जी, रमेश पोखरियाल जी और अर्जुन मुंडा पधार चुके थे। महामहिम राज्यपाल शेखर दत्त जी ने राज्योत्सव समारोह शुभारंभ करने की घोषणा की। गुब्बारों के साथ शानदार आतिश बाजी हुई। उपर आकाश में एक ग्लाईडर राज्योत्सव का बैनर लिए आतिशबाजी के बीच उड़ रहा था। कुल मिलाकर आयोजन भव्य रहा। जिन्हे स्थान मिला उन्होने भी और जिन्हे नहीं मिला उन्होने भी आनंद लिया।
तभी सलमान खान का काफ़िला पहुंच गया अपने बाऊंसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा के साथ। स्टेज पर एफ़ आई आर सीरियल वाली चंद्रमुखी चौटाला (कविता कौशिक) पहुंच चुकी थी। उसके बाद सलमान खान पहुंचे। उसने आते ही दो चार डायलाग चिपकाए।महामहिम राज्यपाल शेखर दत्त जी एवं तीनो राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने उनका स्वागत किया। मंच पर राहुल भैया भी दिखे। हम संतुष्ट थे कि एक ब्लागर भी इस भव्य समारोह में हमारा प्रतिनिधित्व कर रहा है। सलमान खान ने वीडियोकॉन का प्रचार किया और दो अधिकारियों का अपना मित्र बता कर चलते बने। लोग खड़े होकर सोच रहे थे कि एक दो गाने पर ठुमका लगाएगा। लेकिन सलमान ने उन्हे निराश कर दिया। दर्शकों ने दबंग-दबंग का शोर कर खूब हल्ला मचाया।
एक सज्जन सलमान की सुरक्षा करने वाले बाऊंसर शेरा का गुणगान कर रहे थे। उन्होन कहा कि-सलमान कहता है कि शेरा के होते कोई परिन्दा भी उसके पास पर नहीं मार सकता। शेरा अकेला ही 25 लोगों को उठाकर फ़ेंक देता है। शेरा भी मंच पर दिखा लेकिन खली जैसा नजर नहीं आया। लोग भी अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन करने से नहीं चूकते। सलमान की कार रवाना हो चुकी थी, मुस्किल से 10-12 मिनट स्टेज पर दिए और चलते बने।
अपना हाथ-जगन्नाथ-मोबाईल फ़ोटो
किसी भी कार्यक्रम में 4 घंटे बैठना मुस्किल हो जाता है। कार्यक्रम समाप्त होते ही जन सुविधा का स्थान ढूंढा क्योंकि टंकी फ़ुल गयी थी। यह इसलिए बता रहा हूँ कि मेरे जैसे पता नहीं कितने लोग थे वहाँ पर। जब जन सुविधा में पहुंचा तो वहां भी वी आई पी लाईन लगी हुई थी। एक काम ठीक हुआ कि वहाँ के लिए कोई पास की व्यवस्था नहीं थीJ। नहीं तो लाल-पीले-नीले पासों से बहुत बड़ी मुस्किल खड़ी हो जाती। इस संकट से उबरने के बाद कुछ हल्का महसूस हुआ। स्टेज पर बम्बईया डांस प्रारंभ हो गया था। रात के साढे नौ बज रहे थे। ब्लागर भैया ने नास्ता करवा कर श्रस्नेह विदा किया।
जब हम बाहर निकले तो पीले कार्ड वाले वी आई पी स्टेंड में एक सीन देखने मिला की लोगों ने एक चेयर पर 10-10 चेयर रख ली हैं और उस पर खड़े होकर कार्यक्रम देख रहे हैं। आखिर लोग जुगाड़ ही लगा लेते हैं। एक वह भी स्थान था कि लोगों के पास एक भी कुर्सी नहीं बैठने के लिए और एक जगह यह भी थी जहां एक-एक को 10-10 कुर्सियाँ मिली हुई थी।रास्ते में देखा कि भीड़ अभी तक आ रही थी सलमान खान को देखने। उनको विश्वास ही नहीं था कि सलमान खान वापस चला गया। इस तरह राज्योत्सव का उद्घाटन समारोह देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
(तीन चित्र-हरिभूमि और नई दुनिया से साभार)

सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

प्रतियोगिता प्रारंभ--प्रथम पुरस्कार 11,000 रुपए-----------ललित शर्मा

छत्तीसगढ में जलावायु परिवर्तन के प्रति चेतना जगाने के लिए रायपुर जिले के समस्त स्कूलों में कार्यक्रम किए गए। अशोक बजाज जी के नेतृत्व में इस कार्यक्रम को अच्छा प्रतिसाद मिला। कार्यक्रम के लिए पहल IASRD के अध्यक्ष के डी गुप्ता जी ने की थी। हमारे भी मन में आया कि सेतु बंध की गिलहरी सदृश्य पर्यावरण जागरण के महायज्ञ में अपनी भी एक आहुति दें, ब्लॉग जगत में एक आलेख प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए। इसकी चर्चा हमने अन्य मित्रों से की तो उन्होने भी अपना भरपुर सहयोग देने का वचन दिया। जिससे मेरा उत्साह वर्धन हुआ। हमारा उद्देश्य पर्यावरण के प्रति चेतना जागृति करना है। आज पर्यावरण की हानि होने से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से पूरी दुनिया को जुझना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान सामने आ रहे हैं। हम पर्यावरण की रक्षा करें एवं आने वाली पीढी के लिए स्वच्छ वातावरण का निर्माण करें।
प्रतियोगिता प्रारंभ हो रही है। संबंधित जानकारी के लिए हमारा पर्यावरण पर जाएं।

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

पर्यावरण पर आलेख प्रतियोगिता----------------ललित शर्मा

मित्रों,  पर्यावरण प्रदूषण के कारण बहुत सारी समस्याएं हमें घेरती जा रही हैं, नित नए रोग जन्म लेते जा रहे जा रहे हैं। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो निरोग हो। हमें पर्यावरण प्रदूषण के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन के प्रति सचेत होना पड़ेगा। पूरे विश्व में इस दिशा में बहुत कार्य हो रहे हैं। इससे बचने के लिए  हमारा   जागरुक होना अत्यावश्यक है। विगत कई दिनों मैं बच्चों के बीच पर्यावरण के प्रति जागरुक का संदेश देने वाले कार्यक्रमों में गया,तब मेरे मन में आया की ब्लॉग जगत में एक आलेख प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए क्योंकि हमारे ब्लॉग जगत में धुरंधर लिक्खाड़ों और विद्वानों की कमी नहीं है। इसलिए हम एक आलेख प्रतियोगिता आयोजन करने जा रहे हैं। जिसमें नगद पुरस्कार दिए जाएगें और उन्हे समारोह पूर्वक सम्मानित भी किया जाएगा। यह आयोजन यहाँ होगा। जहाँ नियमित स्वीकृत आलेखों का प्रकाशन होगा। संभव हुआ तो सार्थक टिप्प्णीकारों के लिए भी पुरस्कार की व्यवस्था की जाएगी। बाकी जानकारी अगली पोस्ट में दी जाएगी।

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

ये देश है वीर जवानों का--भारतीय सेना को सलाम----------ललित शर्मा

“ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का” जब इस गीत को सुनता हूँ तो मुझे हाथ में रायफ़ल लिए सीमाओं की रक्षा करते जवान याद आ जाते हैं। वैसे भी मेरा लगाव सदा से सेना के साथ रहा है क्योंकि मेरे परिवार का दाना-पानी सेना के पैसे से ही चलता था। वर्दी पहने हुए जवान अपने आभूषणों से सूसज्जित होकर जब कदम ताल करते हैं तो उनके बूटों की धमक से धरती भी हिलने लगती है। लड़ाई का मैदान हो, शांति का समय या सेवानिवृति के बाद का समय, सैनिक आजीवन सैनिक ही बना रहता है। ऐसा अनुशासन सेना में एक 17 साल के रंगरुट को सिखाया जाता है।

छत्तीसगढ में सेना सिर्फ़ एन.सी.सी. के संचालन में ही दिखाई देती थी और कहीं नहीं। एक समय था कि सेना में जाने का जज्बा यहां अन्य प्रदेशों से बहुत कम होता था। आज तो कुछ नवयुवक अपना रुख सेना की तरफ़ कर रहे हैं। विगत दिनों मैं एक मित्र की बेटी की शादी में राजस्थान के झुंझनु जिले के भड़ुन्दा खुर्द गाँव में गया था। वहां जाने पर मुझे पता चला कि वहां से लगभग 800 जवान सेना में हैं और गांव की सारी व्यवस्था सेना के जवान ही संभालते हैं,पंचायत से लेकर साफ़ सफ़ाई तक में अपनी हिस्सेदारी बंटाते हैं क्योंकि हमेशा 200 जवान तो छुट्टी में गांव आए ही रहते हैं। सेना के प्रति मैंने ऐसा आकर्षण इस गांव में देखा।

अभी दो दिनों पहले मैने जब सुना कि भारतीय सेना छत्तीसगढ में “राष्ट्र प्रहरी” थीम पर “अपनी सेना को जाने” नाम से सैन्य मेला कर रही है तो मेले में शिरकत करने की इच्छा प्रबल हो गयी। सेना का यह सराहनीय कदम है जिससे देश के नागरिक अपनी सेना को करीब से जान सकें। सेना ने छत्तीसगढ और उड़िसा का सब-एरिया ऑफ़िस रायपुर में स्थापित किया है। इस दो दिवसीय मेले का शुभारंभ राज्यपाल शेखर दत्त ने किया। इस मेले से नवजवानों को सेना में भर्ती होने के अवसरों एवं अहर्ताओं की जानकारी भी मिलेगी। इस अवसर पर सैनिकों ने अपने करतब भी दिखाए, लेकिन एक अन्य कार्यक्रम में व्यस्त होने के कारण हम इस स्थल पर विलंब से पहुंचे।

सेना के माध्यम से अपना कैरियर बनाने का सपना कुछ प्रदेशों के नौजवान बचपन से ही देखते हैं, जब सेना में भर्ती नहीं हो पाते तो मास्टरी की तरफ़ अपना रुख करते हैं। अब सेना में छत्तीसगढ के नव जवान भी भर्ती होकर अपने राज्य देश और माता-पिता का नाम रोशन कर सकेंगें। इस मेले से उनके अंदर भी सेना को अपना कैरियर बनाने का जज्बा पैदा होगा। आज छत्तीसगढ से अन्य प्रदेशों की अपेक्षा सेना में बहुत ही कम लोग हैं। अब नव जवान रुचि लेने लगे हैं, इसका सबूत सेना की भर्ती रैलियों में देखने मिलता है।आज सेना में जाने के लिए छत्तीसगढ के जवान भी उत्सुक दिखाई पड़ते है और जा भी रहे हैं।

कल भाई अशोक बजाज से चर्चा हो रही थी कि इस मेले को देखने जाना है और वादे के अनुसार मेले में पहुंचे जरुर, लेकिन कुछ विलंब हो चुका था और बरसात मजा किरकिरा कर चुकी थी, मैदान में कीचड़ हो चुका था। फ़िर भी हम सेना के अत्याधुनिक हथियार देखने का लोभ नहीं छोड़ सकते। वहां लोगों की भीड़ लगी हुई थी। नौजवान सैन्य अधिकारियों से हथियारों के विषय में जानकारी ले रहे थे। हम भी मैदान में पहुंचे तो सबसे पहले सत्ता परिवर्तन वाली एवं कारगिल युद्ध जिताने वाली 155 एम एम की तोप पर निगाह पड़ी। उसका बैरल सामने की ओर था। सैनिक उसके फ़ंक्सन चला कर बता रहे थे। हमने वहां एक सैनिक से पूछा कि यह तोप कौन सी है? तो उसने बताया कि 155 एम एम, फ़िर धीरे से कहा कि बोफ़ार्स हैं। हा हा हा मैने इसलिए इसे सत्ता परिवर्तन करने वाली तोप कहा।12000 किलो की यह तोप तत्कालीन कांग्रेस सरकार के लिए पृथ्वी से भी भारी हो गयी थी।

फ़िर आगे चले तो एक टैंक था, उसके पास श्री भगवान नामक सैनिक अफ़सर खड़े थे। हमने उस टैंक के विषय में विषय में उनसे माकूल जानकारी ली। कुछ एन सी सी के कैडेट भी टैंक के सामने खड़े होकर फ़ोटो खिंचवा कर मेले को यादगार बना रहे थे। श्री भगवान ने बताया की यह टैंक उबड़-खाबड़ मैदान, रेगिस्तान और पानी में समान रुप से चलता है। इसकी रफ़्तार 65 किलो मीटर प्रति घंटा है। इसकी तोप प्रत्येक परिस्थिति में लगातार गोले दाग सकती है। इस तरह यह टैंक सेना के लिए काफ़ी कारगर है। इनसे उत्सुकतावश एक मित्र ने पूछ लिया कि आप इसे कहां से लाए हैं तो श्री भगवान ने कहा कि आप क्या करेंगे जानकर? तो मैने कहा यार बच्चे खेलेंगे इससे। इसलिए पूछ रहे हैं। सुनकर ये भी मुस्कुराए।

तभी हमारी निगाहें सामने खड़ी एक लम्बी गाड़ी पर पड़ी। जिसमें तीन मिसाईलें लोड थी। हम उसके पास पहुंचे तो देखा कि यह ब्रह्मोस मिसाईल थी। डी आर डी ओ ने इसे अपनी तकनीक का इस्तेमाल करके बनाया है। वहां उपलब्ध एक अधिकारी ने बताया कि 2-2 सेकंड के अंतराल पर 6 सेकंड में तीनों मिसाईल एक साथ दागी जा सकती हैं तथा 300 किलोमीटर तक इनका निशाना सटीक है। मैं वहां खड़ा सोच रहा था कि गोली बंदुक तो चलाए, एक बार मिसाईल चलाने का मौका मिल जाए तो क्या कहने। लेकिन इस जन्म में वह दिन नहीं आएगा। शायद इसे चलाने के लिए सेना में अगला जन्म लेना पड़े ।

सेना ने रायपुर राजधानी में सैन्य मेला लगा कर युवाओं को सेना के प्रति आकर्षित करने का काम किया है। मैं देख रहा था कि लोग टैंक और तोपों को हाथ लगा कर देख रहे थे। इससे पहले सिर्फ़ चित्रों और फ़िल्मों में ही देखा था। वीरता का जज्बा हमारे देश के नौजवानों में कूट-कूट कर भरा है आवश्यकता है केवल उन्हे सही दिशा देने की। सेना अनुशासन और उत्तरदायित्व सीखाती है। यहां हुक्म उदुली करना बहुत ही कठिन है। आदेश पर पालन सभी परिस्थितियों में करना है। कहीं भी कोई शक की गुंजाईश नहीं होती। अगर देश के युवाओं में अनुशासन लाना है तो प्रत्येक युवा  के 12 वीं पास होते ही 5 साल के लिए सेना में सेवा करना अनिवार्य कर देना चाहिए। उसके पश्चात ही वह अन्य सेवाओं के लिए पात्र हो सके। देश का प्रत्येक नागरिक सैनिक होगा और संकट का समय आने पर दो-दो हाथ करना भी जानता होगा। इसी लिए कहा गया है कि “शस्त्र रक्षिते राष्ट्रे शास्त्र चर्चा प्रवर्तते।“

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

ब्लॉगर मित्रों से एक अपील-----ललित शर्मा

17 सितम्बर को मेरी वेब साईट ललित कला डॉट इन का लोकार्पण ३६ गढ़ के यशस्वी मुख्य मंत्री रमन सिंग जी ने किया. ललित कलाओं पर वेब साईट बनाने की मेरी तमन्ना थी. जो एक दिन पूरी हुयी. जिसकी मुझे बहुत ही ख़ुशी है. लेकिन इस वेब साईट पर अब काम बहुत है. जिसे पूरा करना है. मेरा उद्देश्य है कि हमारे देश में ललित कला के क्षेत्र में काम कर रहे उन साथियों को दुनिया के सामने लाना, जिन्होंने इस क्षेत्र में उत्कृष्ट काम किया है. लेकिन किसी कारण वश उनका काम दुनिया के सामने नहीं आ सका. उसे एक मंच नहीं मिला जिससे वे अपनी कला का प्रदर्शन कर सकें. इनके विषय में भारत भर से जानकारी एकत्रित करना एक दुष्कर कार्य है. जिसे मुझे करना है।
मैं जब से ब्लॉग जगत में आया हूँ, तब से ही सभी ब्लोगर्स का मुझे भरपूर सहयोग मिला है. अब आपके सहयोग की आवश्यकता भारत के कलाकारों और शिल्पकारों को है. उन्हें हैं जो अभाव में जी रहे हैं. ऐसे कलाकार और शिल्पकार जिनकी कला के विषय में हम दुनिया को बताना चाहें, जिससे उनकी क्रृति को कोई खरीद कर उन्हें लाभान्वित करे. हमें जब ऐसा लगे कि इनके उम्दा काम के विषय में दुनिया को पता चलना चाहिए तो उसके विषय में  सभी जानकारियाँ उनकी कृतियों की फोटो सहित एक लेख के रूप में मुझे प्रेषित कर दे. जिससे उनकी समस्त जानकारी www.lalitkala.in पर डाली जा सकें. आपके द्वारा दी गई जानकारी ललित कला कोष में वृद्धि करेगी जिससे कलाकारों के साथ साथ आम लोगो को भी फायदा होगा. उन्हें सभी प्रकार की कला कृतियों के विषय में जानकारी एक ही स्थान पर प्राप्त हो जाएगी.
ब्लॉगर बंधुओं एवं भगिनियों से निवेदन है की यदि आपकी रुचि कलाकृति निर्माण में हो या आप ललित कलाओं से संबंधित कार्य करते हों या आपके आस-पड़ोस, गाँव-शहर में करता हो तो समस्त जानकारी कलाकृतियों के चित्र सहित मुझे (shilpkarr@gmail.com) ई मेल करें। उसे ललित कला वेब साईट में स्थान दिया जाएगा।आप यहाँ से वेब साईट का अवलोकन करें।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

रावण भाटा से सीधी रपट---------ललित शर्मा

दशहरा पर्व की चित्रावलियाँ--रावण भाटा से सीधी रिपोर्ट

रावण तैयार है युद्ध के लिए

उदय भी  पहुंच चुके हैं युद्ध के मैदान में

हा हा हा हा मैं ही हूँ दशानन

युद्ध का मैदान सज रहा है

तब तक गोल गप्पे का मजा ले लिया जाए

चाट वाले राजु की दृष्टि से रावण भाटा

गुब्बारे वाले भी हैं-उदय को चाहिए

राम लीला शुरु हो चुकी है

राम रमापति कर धनु लेहू

कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू और अशोक भाई पधार चुके हैं

अशोक भाई विजयादशमी की शुभकामनाए देते हुए

कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहु, ललित शर्मा, राधा कृष्ण टंडन

दो लाख का अनुदान दो-मैं प्राणोत्सर्ग करने तैयार हूँ

रावण दहन की तैयारी

रावण के पुतले में मंत्री जी ने आग लगाई

धू धू करके जलता रावण

प्रतिवर्ष यही गति है रावण की

एखर का भरोसा चोला माटी के हे

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

गाँव की रामलीला--प्यासा पनघट और बरसाती सत्यानाश ---- ललित शर्मा

एक समय था जब गाँव-गाँव में रामलीला की जाती थी। जिसमें गाँव के लोग बढ-चढ कर हिस्सा लेते थे। छोटे-बड़े सभी लोग राम लीला के पात्र बनते थे और लगातार 11 दिनों तक राम लीला का आयोजन होता था। शाम 6 बजे से ही सभी अपनी-अपनी चटाई आयोजन स्थल पर बिछा आते थे। जब राम लीला शुरु होती थी तो सबसे पहले गणेश जी की आरती की जाती थी “ज्ञान के उजागर सद्गुण आगर आज मनावहुं तुम ही गणेश” की वंदना की जाती थी। एक कलाकार गणेश जी का मुखौटा पहन कर गणेश बनकर मंच उपस्थित होता था। उसके बाद हास्य कलाकार आते थे जो जी भर दर्शकों को हंसाते थे।
एक पुराना हास्य गीत याद आता है-
सरदार मेरे प्यारे मैं हूं जंगल का सरदार
जो मांगे लड़का लड़की उसको मैं दिलवाता हूँ
जो कोई मांगे डऊका डऊकी उसको मैं दिलवाता हूँ
सरदार मेरे प्यारे मैं हूँ जंगल का सरदार
अंदर मंदर मस्त कलंदर भूतनाथ कहलाता हूँ
महाराज के महलों में मैं हलवा पूड़ी खाता हूँ
सरदार मेरे प्यारे मैं हूँ जंगल का सरदार

यह गीत जोकर लोग गाते थे। सुनकर बड़ा मजा आता था। दर्शक हंस-हंस कर लोट पोट हो जाते थे। राम लीला एक विशुद्ध स्वस्थ मनोरंजन का साधन होता था। जिसमें लोग श्रद्धा के साथ उपस्थित होते थे। वर्तमान में टीवी और वीडियो ने राम लीलाओं का खात्मा ही कर दिया बस एक औपचारिकता रह गयी है। विजया दशमी के दिन लीला के पात्र सज संवर कर एक घंटे का प्रहसन कर रावण के पुतले को आग लगा देते हैं और विजया दशमी मना ली जाती है। यह आयोजन सिर्फ़ औपचारिक हो गए है। एक दिन के आयोजन में अब वह आनंद कहाँ है जो 11 दिनों के आयोजनों में होता था। जिसकी तैयारी महीनों की जाती थी। पात्र-पोशाक चयन से लेकर संवाद तक मेहनत की जाती थी। संगीत पक्ष भी अपनी तैयारी करता था। राम लीला में इसका बहुत ही महत्व है।

अभनपुर क्षेत्र के ग्राम हसदा के सरपंच मेरे पुराने मित्र हैं। जब उनसे इस विषय पर चर्चा हुई तो उन्होने बताया कि उनके गांव में दो दिन की राम लीला का आयोजन हो रहा है। तो मैने हसदा 12 किलोमीटर हसदा जाकर राम लीला देखने का विचार बनाया। शाम को हृदय गुरुजी मुझे ढूंढते हुए आ गए। उन्हे साथ लेकर मैं हसदा पहुंच गया। शाम हो चुकी थी। साप्ताहिक बाजार लगा हुआ था। लोग अपनी आवश्यक्ता की वस्तु खरीद रहे थे। सरपंच ब्यास नारायण साहू उद्घोषणा कर रहे थे कि कुछ देर बाद राम लीला शुरु होने वाली है। सभी दर्शक खा-पीकर आयोजन स्थल पर शीघ्र पहुंचे। आज अहिरावण वध का प्रसंग दिखाया जाएगा। हम तो पहले ही पहुंच चुके थे।
ग्राम पंचायत भवन में राम लीला के सभी पात्र सज संवर रहे थे। सभी कार्य यंत्र वत चल रहा था। विभिषण का पात्र पत्थर पर हड़ताल घिस रहा था। जिसे मुंह पर लगाया जाता है। लग भग 65 साल के गाँव के गौंटिया (मालगुजार) बिसौहा साहू जी मेकअप कर रहे थे। शायद रावण के पात्र अभिनय इन्हे ही करना था। ब्यास नारायण साहू अहिरावरण के पात्र की तैयारी कर रहे थे। सभी अपने-अपने कार्य में व्यस्त थे। मैं वहां बैठे-बैठे अपने बचपन के दिनों को याद कर रहा था। जब हम भी राम लीला में किसी न किसी पात्र का अभिनय करते थे। बहुत उत्साह होता था राम लीला के मंच पर अभिनय करने का। अब यह परम्परा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। इसे जीवित रखना निहायत ही जरुरी है।

दर्शक पहुंच रहे थे अपनी-अपनी बोरियाँ और चटाई लेकर। हसदा गाँव से मेरा बचपन का नाता रहा है। एक बार तो मानिक चौरी तक रेल गाड़ी से जाकर हसदा तक खेतों की मेड़ पर चल कर पैदल ही हसदा गाँव पहुंचा था। उस समय मैं चौथी कक्षा में पढता था। हसदा गाँव का तालाब इतना सुंदर था कि मत पूछिए। उसमें कमल कुमुदिनी खिले हुए थे। पानी इतना साफ़ था कि क्या बताऊं आपको। अगर एक सिक्का भी डाल दिया जाता था तो 5 फ़ुट की गहराई में स्पष्ट नजर आता था। लेकिन अब पानी हरा हो चुका है गाँव भर की गंदगी तालाब में आ रही है। तालाब के किनारे पर मुत्रालय बन गया है। सारा मल मुत्र तालाब के पानी में बहाया जा रहा है। अब इसके चारों तरफ़ घर बन गए हैं जो अपनी निस्तारी इस तालाब से करते हैं। लेकिन पानी को निर्मल रखने का उपाय नहीं कर पा रहे। उनके घरों का मल मूत्र भी तालाब के पानी को प्रदूषित कर रहा है। अब मुझे वे कमल-और कुमुदनी देखेने नहीं मिले।

रावण के दरबार के आयोजन की विशिष्टता यह होती है कि जब रावण का दरबार सजता है तो अप्सराएं अवश्य ही नृत्य करती हैं। मदिरा बहाई जाती है। दरबारी नाच का आनंद लेते हैं। इसलिए अप्सरा का पात्र भी महत्वपूर्ण होता है। इसकी भूमिका भी नृत्य में प्रवीण कोई लड़का ही निभाता है। यहाँ भी देवनाथ विश्वकर्मा अप्सरा का श्रृंगार कर रहे थे। मैने चुपके से श्रृंगार करते हुए मोबाईल से इसका चित्र ले लिया। क्योंकि यह बहुत शरमा रहा था। स्त्रियोचित सभी गुण और भाव उसके चेहरे पर मौजुद थे। ब्यास नारायण ने बताया कि यह लड़का बहुत अच्छा डांसर है और राम लीला दल का सक्रिय सदस्य है। इस दल में 70 साल से लेकर 10 साल तक के कलाकार हैं जो स्व प्रेरणा से राम लीला को अंजाम देते हैं।

बरसों के बाद जब गाँव में पहुंचा तो देखा कि सड़क पक्की हो चुकी है। सड़क के किनारे जो मिट्टी के कच्चे घर थे वे अप दो मंजिल और तीन मंजिल की हवेलियों में बदल चुके हैं। बदलाव की बयार यह गांव भी अछूता नहीं है। गाँव का पुराना कुंआ वैसा है जैसा मैने तीस साल पहले देखा था। उसकी मुंडेर पर उसी तरह कुछ लोग बैठे दिखे। जब इसके पनघट का उपयोग किया जाता था तब से पता नहीं इस कूंए ने कितनो की प्यास बुझाई होगी। कितने मजनुओं ने अपनी आँखे तृप्त नहीं की होगी। पनघट सदा से आकर्षण का केन्द्र रहा है। लेकिन इस कूंए के पनघट पर शायद ही अब कोई चम्पा-चमेली आती हो। घर-घर नलों के कनेक्शन हो गए हैं। इसलिए कुंए का पनघट अब वर्जित क्षेत्र हो गया है। पता नहीं कब से पनघट प्यासा खड़ा है।

राम लीला शुरु हो चुकी है। हम अपनी कुर्सियाँ लगा कर सामने बैठ चुके हैं। गणेश जी की आरती शुरु हो गयी है। बिसौहा गौंटिया गणेश का रुप धारण कर मंच पर विराजमान हो चुके हैं। अहिरावण का रुप धरे सरपंच ब्यास नारायण गणेश जी आरती कर रहे हैं। हारमोनियम, तबला, ढोलक, खंजरी, झांझ, बेंजो, केसियो पर वाद्य कलाकार संगत कर रहे हैं। “जय गणेश जय गणेश देवा, माता तेरी पार्बती पिता महादेवा”। अरे ये क्या होने लगा?........... दर्शक उठ कर भागने लगे। आसमान से बरसात शुरु हो गयी। कलाकार भीगते हुए गणेश वंदना पूरी कर रहे हैं। हम भी ग्राम पंचायत के भीतर भागे। राम लीला में व्यावधान उत्पन्न हो गया। वहां बैठे बैठे प्रतीक्षा करते रहे कि बरसात रुके तो फ़िर से राम लीला प्रारंभ हो। बिना मौसम बरसात ने मामला बिगाड़ दिया।
ग्राम हसदा की राम लीला मंडली के कुछ प्रमुख कलाकार—अहिरावण के पात्र में- ब्यास नारायण साहू, रावण – बिसौहा गौंटिया, विभिषण- तोषण लाल साहू, हनुमान- यशवंत साहू, राम- परमेश्वर, लक्ष्मण- खिलेन्द्र साहु, मकरध्वज- बिसौहा राम, अंगद-जितेन्द्र साहु, सुग्रीव-विजय, महेन्द्र साहू, जगन्नाथ साहू, हास्य कलाकार-गुलशन साहु, उत्तम वाद्यक, रमाशंकर साहु, देवनाथ। डांसर- देवनाथ विश्वकर्मा, भाव सिंग साहु। जोकर-उदय राम साहु।वाद्य कलाकार- हारमोनियम- नारायण प्रसाद साहु, केसियो-पुरानिक राम साहु, ढोलक- लोकेश वाद्यक, तबला-नोहरु राम साहु, झांझ- भोज राम साहु, ढोल-लोकनाथ साहु, डफ़ली-सीताराम साहु।

कुछ देर पश्चात बरसात रुकी तो हमारा मन उखड़ चुका था। अगर फ़िर कहीं बरसात हुई तो रात हसदा में ही गुजारनी पड़ेगी। यह सोच कर हम वापस घर आ गए। अभी लगाए हुए चित्र मेरे मोबाईल कैमरे के हैं। आगामी पोस्ट में डिजिटल कैमरे के चित्र मिलेंगे।