शनिवार, 24 नवंबर 2012

अदृश्य रहस्यमय गाँव टेंवारी

रती पर गाँव-नगर, राजधानियाँ उजड़ी, फिर बसी, पर कुछ जगह ऐसी हैं जो एक बार उजड़ी, फिर बस न सकी। कभी राजाओं के साम्राज्य विस्तार की लड़ाई तो कभी प्राकृतिक आपदा, कभी दैवीय प्रकोप से लोग बेघर हुए। बसी हुयी घर गृहस्थी और पुरखों के बनाये घरों को अचानक छोड़ कर जाना त्रासदी ही है। बंजारों की नियति है कि वे अपना स्थान बदलते रहते हैं, पर किसानों का गाँव छोड़ कर जाना त्रासदीपूर्ण होता है, एक बार उजड़ने पर कोई गाँव बिरले ही आबाद होता है। गरियाबंद जिले का केडी आमा (अब रमनपुर )गाँव 150 वर्षों के बाद 3 साल पहले पुन: आबाद हुआ। यदा कदा उजड़े गांव मिलते हैं, यात्रा के दौरान। ऐसा ही एक गाँव मुझे गरियाबंद जिले में फिंगेश्वर तहसील से 7 किलो मीटर की दूरी पर चंदली पहाड़ी के नीचे मिला।
गूगल बाबा की नजर से 
सूखा नदी के किनारे चंदली पहाड़ी की गोद में 20.56,08.00" उत्तर एवं 82.06,40.20" पूर्व अक्षांश-देशांश पर बसा था टेंवारी गाँव। यह आदिवासी गाँव कभी आबाद था, जीवन की चहल-पहल यहाँ दिखाई देती थी। अपने पालतू पशुओं के साथ ग्राम वासी गुजर-बसर करते थे। दक्षिण में चंदली पहाड़ी और पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती सूखा नदी आगे चल कर महानदी में मिल जाती है। इस सुरम्य वातावरण के बीच टेंवारी आज वीरान-सुनसान है। इस गाँव के विषय में मिली जानकारी के अनुसार इसे रहस्यमयी कहने में कोई संदेह नहीं है। उजड़े हुए घरों के खंडहर आज भी अपने उजड़ने की कहानी स्वयं बयान करते हैं। ईमली के घने वृक्ष इसे और भी रहस्यमयी बनाते हैं। ईमली के वृक्षों के बीच साँपों बड़ी-बड़ी बांबियाँ  दिखाई देती हैं। परसदा और सोरिद ग्राम के जानकार कहते हैं कि गाँव उजड़ने के बाद से लेकर आज तक वहां कोई भी रहने की हिम्मत नहीं कर पाया।
रमई पाट के पुजारी प्रेम सिंह ध्रुव

ग्राम सोरिद खुर्द से सूखा नदी पार करने के बाद इस वीरान गाँव में अब एक मंदिर आश्रम स्थित है। रमई पाट के पुजारी प्रेम सिंह ध्रुव कहते हैं- जब हम जंगल के रास्ते से गुजरते थे तो एक साल के वृक्ष की आड़ में विशाल शिवलिंग दिखाई देता था। जो पत्तों एवं घास की आड़ छिपा था। ग्रामीण कहते थे कि उधर जाने से देवता प्रकोपित हो जाते हैं इसलिए उस स्थान पर ठहरना हानिप्रद है। इसके बाद मंगल दास नामक साधू आए, उनके लिए हमने पर्णकुटी तैयार की। पहली रात को ही हमे भयावह नजारा देखने मिल गया। हम दोनों एक चटाई पर सोये थे, बरसाती रात में शेर आ गया और झोंपड़ी को पंजे से खोलने लगा। हम साँस रोके पड़े रहे और भगवान से जान बचाने की प्रार्थना करते रहे। छत की तरफ निगाह गयी तो वहां बहुत बड़ा काला नाग सांप लटक कर जीभ लपलपा रहा था। हमारी जान हलक तक आ गयी थी, भगवान से अनुनय-विनय करने पर दोनों चले गए। मैं झोंपड़ी से निकल कर शिवलिंग के सामने दंडवत हो गया। उस दिन के पश्चात इस तरह की घटना नहीं हुयी।
टानेश्वर नाथ महादेव

आश्रम में पहुचने पर भगत सुकालू राम ध्रुव से भेंट होती है, शिव मंदिर आश्रम खपरैल की छत का बना है, सामने ही एक कुंवा है। कच्ची मिटटी की दीवारों पर सुन्दर देवाकृतियाँ बनी हैं। शिव मंदिर की दक्षिण दिशा में सूखा नदी है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह शिवलिंग प्राचीन एवं मान्य है। इसे टानेश्वर नाथ महादेव कहा जाता है, यह एकमुखी शिवलिंग तिरछा है। कहते हैं कि फिंगेश्वर के मालगुजार इसे ले जाना चाहते थे, खोदने पर शिवलिंग कि गहराई की थाह नहीं मिली। तब उसने ट्रेक्टर से बांध कर इसे खिंचवाया। तब भी शिवलिंग अपने स्थान से टस से मस नहीं हुआ। थक हार इसे यहीं छोड़ दिया गया। तब से यह शिवलिंग टेढ़ा ही है। मंगल दास बाबा की समाधी हो गयी। वे ही यहाँ रात्रि निवास करते थे, उसके बाद से आज तक यहाँ रात्रि को कोई रुकता नहीं है। अगर कोई धोखे से रुक जाता है तो स्थानीय देवी-देवता उसे विभिन्न रूपों में आकर परेशान करते हैं, डराते हैं। सुकालू भगत भी शाम होते ही अपने गाँव धुडसा चला जाता है।
सुकालू भगत

बाबा मंगल दास के पट्ट शिष्य परसदा निवासी भूतपूर्व सरपंच जगतपाल इस गाँव के उजड़ने का बताते हैं कि टेंवारी गाँव में इतने सारे देवी देवता इकट्ठे हो गए हैं कि त्यौहार के अवसर पर एक कांवर भर के उनके नाम के दिए जलाने पड़ते हैं। किसी देवता की भूलवश अवहेलना होने पर उसके उत्पात गाँव में प्रारंभ हो जाते थे। महिलाओं के मासिक धर्म के समय की अपवित्रता के दौरान अगर कोई महिला घर से बाहर निकल जाती थी तो ग्रामवासियों को दैवीय प्रकोप झेलना पड़ता था। बीमारी हो जाना, रात को जानवरों का बाड़ा स्वयमेव खुल जाना, मवेशियों को शेर, बुंदिया द्वारा उठा ले जाना, अकस्मात किसी की मृत्यु हो जाना इत्यादि दैवीय प्रकोपों को निरंतर झेलना पड़ता था। इससे बचने के लिए मासिक धर्म के दौरान पुरुष, महिलाओं के स्नान के लिए स्वयं पानी भर के लाते थे। सावधानी बरतने के बाद भी चूक हो ही जाती थी। तब फिर से दैवीय प्रताड़ना का सिलसिला प्रारंभ हो जाता था।
घरों के अवशेष 

एक समय ऐसा आया की सभी ग्रामवासियों ने यहाँ से उठकर अन्य स्थान पर निवास करने का निर्णय किया।  भागवत जगत "भुमिल" कहते हैं कि सोरिद मेरी जन्म भूमि है, लगभग सन 1934 में टेंवारी के ग्राम वासी सोरिद खुर्द, नांगझर एवं फिन्गेश्वरी  में विस्थापित हुए, 1920 के राजस्व अभिलेखों में इस गाँव का उल्लेख मिलता है। अदृश्य शक्तियों के उत्पात इस वीरान गाँव में तहलका मचाते हैं। यहाँ के शक्तिशाली देवता बरदे बाबा हैं, इनका स्थान चंदली पहाड़ी पर है। जगतपाल कहते हैं कि यदि इस पहाड़ी पर कोई भटक जाता है तो बरदे बाबा उसे भूखा नहीं मरने देते। उसे जंगल में ही चावल, पानी और पकाने का साधन मिल जाता है। यहाँ के समस्त देवी देवताओं की जानकारी तो नहीं मिलती पर मरलिन-भटनिन, कोडिया देव, कमार-कमारिन, कोटवार, धोबनिन, गन्धर्व, गंगवा, शीतला, मौली, पूर्व दिशा में सोनई-रुपई जानकारी में हैं तथा नायक-नयकिन यहाँ के मालिक देवी-देवता हैं।
ईमली के पेड़ों के बीच अवशेष 

जगतपाल कहते हैं कि जब मैं आश्रम में रुकता था तो तरह-तरह के सर्प दिखाई देते थे। दूध नाग, इच्छाधारी नागिन, लाल रंग का मणिधारी सर्प दिखाई देता था, वह अपनी मणि को उगल कर शिकार करता है, अगर मैं चाहता तो उसकी मणि को टोकनी से ढक भी सकता था पर किसी अनिष्ट की आशंका से यह काम नहीं किया। आश्रम में रात को सोनई-रुपई स्वयं चलकर आती हैं। मैंने कई बार देखा है। इस स्थान पर सिर्फ मंगल दास बाबा ही टिक सके, अन्य किसी के बस की बात नहीं थी। बाबा ने बताया था कि एक बार 12 लोगों ने मिल कर खुदाई करके सोनई-रुपई को निकल लिया था, पर ले जा नहीं सके। यहाँ कोई चोरी करने का प्रयास करता है उससे स्थानीय अदृश्य शक्तियां स्वयं निपट लेती है। कहते हैं कि इस पहाड़ी की मांद में सात खंड हैं, पहले खंड में टोकरी-झांपी, दुसरे खंड में नाग सर्प, तीसरे में बैल , चौथे में शेर, पांचवे में सफ़ेद हाथी, छठे में देव कन्या एवं सातवें में बरदे बाबा निवास करते हैं।
बाबा मंगल दास के पट्ट शिष्य परसदा निवासी भूतपूर्व सरपंच जगतपाल

टानेश्वर नाथ शिवजी के विषय में मान्यता है कि जब इसके पुजारी धरती पर जन्म लेते हैं तब यह (भुई फोर) धरती से ऊपर आकर प्रकाशित होते हैं, इनके पुजारी नहीं रहते तो ये फिर धरती में समाहित हो जाते हैं। साथ ही किंवदंती है कि टानेश्वर नाथ महादेव के दर्शन करने से सभी पाप एवं कल्मषों का शमन हो जाता है। टेंवारी गाँव उजड़े लगभग एक शताब्दी बीत गयी पर दूबारा किसी ने इस वीरान गाँव को आबाद करने की हिम्मत नहीं दिखाई। ईश्वर ही जाने अब टेंवारी कब आबाद होगा? शायद इसकी भी किस्मत केडी आमा गाँव जैसे जाग जाए।
सूखा नदी के किनारे यायावर 

सोमवार, 19 नवंबर 2012

चचा छक्कन और चोर पार्टी की सदारत

सुबह की सैर के वक्त चचा छक्कन दिखाई दे गए, दुआ सलाम के साथ हाल-चाल खैरियत का आदान-प्रदान हुआ। "क्या बताएं मियाँ महंगाई ने हालत ख़राब कर दी, जीना मुहाल हो गया। वैसे भी खानदानी होने के चलते हम सरकार की किसी भी एपीएल, बीपीएल जैसे योजना के खांचे में फिट नहीं होते। ऊपर से खुदा के फजल से दर्जन भर बच्चों की फ़ौज तैयार हो गयी। कोई गरीब मानने को तैयार ही नहीं होता। ऐसे में हमारे जैसे निठल्ले साहित्यकार का तो सवा सत्यानाश समझिये। कभी-कभार एक दो मुशायरे कवि सम्मलेन मिल जाते थे, वे भी छद्म श्री की भेंट चढ़ गए। जिसकी छाती पर बिल्ला लटक गया, समझो उससे बड़ा ठेकेदार कोई नहीं। सारे के सारे धन के स्रोतों का प्रवाह उसकी जेब में जाकर गिरता है। गोया उनकी जेब ना हुई,बंगाल की खाड़ी हो गई।" चचा ने जाफरान की खुश्बू का फव्वारा मुंह से छोड़ते हुए कहा। 
"बजा फ़रमाया चचा आपने, कुछ ऐसा ही अपना भी हो गया है। 4 साल से इंटरनेट का कुंजी पटल खटखटाते जेब में छेद हो गया। ऊपर से महंगाई ने तो कनिहा ही तोड़ कर रख दिया है। एक काम करिए, किसी राजनैतिक पार्टी के मेम्बर बन जाइये। फिर धीरे से एकाध पद ले लीजिये, सत्ता वाली पार्टी हो तो पौ बारह जानिए। आपकी जेब भी बंगाल की खाड़ी से कम न रहेगी। फिर हम भी तो हैं आपके साथ ही, जिसकी भी जिंदाबाद-मुर्दाबाद करने कहेगें, आपके आदेश का पालन करते हुए, तत्काल कर दी जाएगी।" मैंने चचा की जेब में झांकते हुए कहा। "चलो उस पुलिया पर बैठ कर चर्चा करते हैं, तुम्हारी सलाह पर गौर किया जाएगा।" चचा ने कहा।  पुलिया पर झाड़-पोंछ कर बैठने के बाद चचा ने जेब से खैनी निकाली और घिसने लगे। खैनी घिसने का मतलब था की वे चिंतन में व्यस्त थे। थोड़ी देर बाद मुझे खैनी दी और डिबिया जेब के हवाले की।
चलो मियाँ अब तुम्हारी सलाह मान लेते हैं, वैसे भी हम कुछ ढीठ किस्म के इन्सान हैं. एक बार जो सोच लिया वह सोच लिया। ठीक है चचा फिर मिलते हैं ब्रेक के बाद। इस मुलाकात के बाद हम अपने काम में लग गए और चचा अपने नए धंधे में। अपनी व्यस्तताओं के चलते एक-डेढ़ बरस में चचा से मुलाकात ही नहीं हुई।  एक दिन चचा के घर के बाहर बड़ी सी होर्डिंग लगे देखी। उसमे लगी फोटो में चचा ने कलफ लगी अचकन और शेरवानी पहनी हुई थी, ऐनक के पीछे से नूर टपक रहा था। चचा की आदमकद फोटो थी और बड़े नेताओं की छोटी। मैंने एक सरसरी निगाह डाली और आगे बढ़ गया। लौटते हुए मेरी निगाह होर्डिंग पर पड़ी तो गायब थी। मैंने कोई खास ध्यान नहीं दिया।
अगले दिन मुझे सुबह की सैर के वक्त चचा मिल गए। दुआ सलाम के बाद खैरियत पूछने पर उन्होंने मुझे ही निशाने पर ले लिया - आप भी कमाल करते हैं मियाँ, मुझे फंसा कर खुद रफूचक्कर हो लिए, उस दिन के बाद आज खैर-खबर ले रहे हो। अरे कौन सा पहाड़ टूट पड़ा चचा, जो सुबह-सुबह ही फायर हुए जा रहे हो- मैंने चचा से आँख मिलाते हुए कहा। अरे मत पूछो हमारा हाल, वो तो हम ही जानते हैं या उपर बैठा वो जानता है। सालों ने जीना हराम कर दिया, इससे तो निठल्ले ही भले थे- चचा ने पैजामे से ऐनक पोंछते हुए कहा। कुछ तो बताओगे चचा, सियासी पार्टी में तो सभी चांदी काट रहे हैं। जिनको खाने का सऊर नहीं वो भी छिलके समेत केला गटक रहे हैं। जिनके पास भुनाने को कभी दाने नहीं थे वे भाड़ के मालिक बने बैठे हैं और एक आप हैं जो मुझे ही लानत-मलानत  जा रहे हैं।
जब यही बात यही बात है तो सुनो, चचा ने आँखों पर ऐनक लगते हुए कहा - मंत्री जी के चेले ने कहा कि चचा अब आप अध्यक्ष बन गए हैं चोर पार्टी के, कम से कम अपने नेताओं को खुश करने के लिए एक दो होर्डिंग ही लगवा दो। उसमे आपकी फोटो भी रहेगी और नेताओं की भी। इससे आपके नंबर बनने के चांस बढ़ जायेगे और मंत्री जी की गुड बुक में आपका नाम दर्ज हो जायेगा। मियाँ, यहाँ के सियासी दांव-पेंच हमारी समझ से बाहर थे। हमने होर्डिंग बनवा कर लगाव दी। होर्डिंग लगवाने के एक घंटे के बाद ही छुटकू नेता जी का फोन आ गया। बोले कि बहुत बड़े नेता बनते हो चचा, होर्डिंग में अपनी फोटो बड़ी और हमारी फोटो छोटी लगवा दी। कहीं ऐसा न हो आपके पर कतरने पड़ें। हमने तुरंत होर्डिंग उतरवा दी। तभी एक नेता और पहुँच गए, वो कहने लगे कि चचा होर्डिंग हटवाने के बाद दूसरी बनवा कर लगवाइए। 
अब हमने जो होर्डिंग बनवाई, उसमे अपनी फोटो छोटी लगाई, पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं को सिर पर बैठाया। लोकल नेताओं की फोटू लगवाई। मंत्री जी और अध्यक्ष जी की फोटो लगवाई। होर्डिंग लगते ही मंत्री जी का फोन आ गया, बोले कि इतनी जल्दी बड़ी सियासत सीख गए चचा। हमारे विरोधी की फोटो बड़ी और हमारी छोटी लगाई है, हमें नीचा दिखाने के लिए, देखो कहीं आपकी लुटिया न डूब जाये। अब मियाँ हमने फिर होर्डिंग उतरवाई, दूसरी बनवाई, इसमें मंत्री जी और अध्यक्ष जी की फोटो बराबर करके लगवाई, फीते से नाप कर। होर्डिंग लगते ही जेलर के जासूस फिर सक्रिय हो गए। अध्यक्ष जी का फोन आया, क्या मजाक बना रखा है चचा आपने। मंत्री बड़ा होता है या संगठन का अध्यक्ष ? हमने उसे टिकिट दी है तब मंत्री बना है और हमारी फोटो आपने मंत्री के बराबर लगवा दी। हम आपको सस्पेंड करते है। समाचार कल के अख़बारों में देख लेना।
हमारी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी। बड़ी देर तक घिघियाए, अध्यक्ष जी हमें गरियाते रहे, फनफनाते रहे। बड़ी  मुस्किल से माने और हम सस्पेंड होने से बच गए। हमने होर्डिंग फिर उतरवा दी। अगले दिन मंत्री जी का फोन आ गया कि होर्डिंग क्यों हटवाई? हमने कहा कि कल के तूफान में होर्डिंग उड़ गयी। मंत्री जी ने कहा कि होर्डिंग फिर बनवाई जाये। उनका आदेश सुनते ही हमारी तो पुतलियाँ फिर गयी और गश आ गया। चुन्नू की अम्मा ने हमें लुढकते देख लिया और पानी के छींटे मारे तब होश आया। होश में आते ही हमने अपना इस्तीफा लिख दिया और अध्यक्ष जी को भेज दिया। हमें छक्कन मियाँ  ही बने रहने दिया जाए। साल भर से ढक्कन बने हुए थे। ये सियासत भी बड़ी गन्दी चीज है मियाँ। होर्डिंग की फोटो से ही इनके कद बड़े-छोटे हो जाते हैं, लानत है इन पर। लाहौल बिला कुव्वत, लौट कर बुद्धू घर को आए। बंगाल की खाड़ी तो नहीं बनी हमारी जेब, हाँ! कंगाल की खाड़ी जरुर हो गयी। अब हम किसी के चक्कर में नहीं फंसेंगे, हम भले और हमारा कुनबा भला।

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

तुम ही कहो ........ ललित शर्मा

तुम ही कहो
कैसे मनाऊँ दीवाली?
महंगी हुई है शक्कर
महंगा हुआ आटा दाल
बाजारों में आग लगी
निर्धन का कौन हवाल
तुम ही कहो .........

रंग रोगन से
लिपे पुते घर
लक्ष्मी आए आँगन में
धन हो जिसका रोज निवाला
बरसे उस ठग के आँगन में
सत्य हमेशा ठगा रहेगा?
यह है एक सवाल
तुम ही कहो ........

दिन-रात की
हाड़-तोड़ मेहनत
एक दीए की आशा में
लगी रही नजरें उसकी
कुछ धन की प्रत्याशा में
लाऊँ कहाँ से फुलझड़ी
राह देखे बाल-गोपाल
तुम ही कहो ........

फिर भी लक्ष्मी
तेरा स्वागत है
मेरे घर की दुवारी पे
मुझ पर तू रीझ जाए
खिले फूल फुलवारी में
जो भी है करूँ अर्पण
दे जाए तू कुछ माल
तुम ही कहो .........



तन मन हो आलोकित, अंतरतम हो उजियार
आप सभी हो मुबारक , दीपावली का त्यौहार ..........

सभी मित्रों को दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

शनिवार, 10 नवंबर 2012

हपटे बन के पथरा, फोरे घर के सिल ....... ललित शर्मा

एक घटना अमूमन सभी बाइक एवं कार चालकों के साथ घटती है, किसी मोहल्ले या सड़क से जाते वक्त किनारे बैठा कोई कुत्ता गाड़ी देख कर गुर्राते हुए हमला करने की मुद्रा बनाकर दूर तक दौड़ाता है. ऐसी हालत में फुटरेस्ट से पैर ऊपर उठाने पड़ते हैं. कहीं काट ले तो इंजेक्शन लगवाने का दर्द झेलना पड़ सकता है. कभी - कभी कार में बैठे होने पर कुत्ते दौड़ाते हैं तो बाइक सवार की तरह पैर अपने आप ही ऊपर उठ जाते हैं. जब तक कुत्ते उसे अपने इलाके से खदेड़ नहीं लेते तब गाड़ी के पीछे दौड़ते ही रहते हैं. फिर दूसरी आने वाली गाड़ी के पीछे पड़ जाते हैं. दिन भर इनका यही काम चलता रहता है. बाइक सवार जान बचाकर भागता है और ये दांत निपोरते हुए उसका मजा लेते हैं. वो भी सोचता है कि कुत्तों के कौन मुंह लगे? लेकिन बाइक और कार सवार को दौड़ाने के पीछे जायज कारण भी है. ऐसी ही किसी गाड़ी ने कभी इन्हें चोट पहुचाई होगी. तभी ये बदला लेने के लिए तत्पर रहते हैं. 

एक सर्जन मित्र हैं, हम खाली समय में अस्पताल के ओटी में बैठ कर चेस खेलते थे. वहां कोई परेशान करने नहीं आता था. एक दिन दोपहर में सिपाही दरवाजे तक आ गया. डॉक्टर की खोपड़ी उसे देखते ही गरम हो गई. वह सिपाही पर चढ़ बैठा कि भीतर क्यों आया. सिपाही ने कहा कि - साहब एम. एल. सी. रिपोर्ट लेनी है. डॉक्टर ने उसे धमका कर इंतजार करने कहा. दो घंटे बाद जाकर उसे एम.एल.सी. रिपोर्ट दी. कुछ दिनों बाद फिर एक सब इंस्पेक्टर एम.एल.सी. कराने आया. मैं भी वहां मौजूद था. डॉक्टर साहब फार्म भरने लगे. तुम्हारा नाम बताओ.......? हां! हवलदार हो? वो बोला- सर मैं सब इंस्पेक्टर हूँ. डॉ. ने कहा - अच्छा-अच्छा पहले बताना चाहिए ना... मैंने हवलदार लिख दिया इसमें.. मुझे बैठे-बैठे हंसी आ रही थी. स्पष्ट दिख रहा था कि उसके कंधे पे दो सितारे लगे हैं... मतलब दरोगा था. लेकिन डॉक्टर मुफ्त में उसकी मौज ले रहा था. मुझे कुत्ते के गाड़ी के पीछे दौड़ाने वाला सीन याद आ गया. अवश्य ही कहीं डॉक्टर साहब को इनसे चोट-फेट लगी है. तभी इस तरह का सीन देखने मिल रहा है. पूछने पर मेरी शंका सही निकली. डॉक्टर साहब के रूम से चोरी हुयी थी तब खाकी वर्दी से इन्हें माकूल सहायता नहीं मिली. ना ही चोरी गया समान मिला. तब से डॉक्टर साहब भी अपने रुतबे पर कायम है.

कभी-कभी मनुष्य के जीवन में कुछ ऐसा घट जाता है कि वह उस घटना को लेकर सभी के प्रति एक जैसी ही धारणा बना लेता है और एक जैसा व्यवहार सभी के साथ करने लगता है. आवश्यक नहीं है कि जो उसके साथ घटा हो वह सभी के साथ घटे. सभी को एक तुला पर तोलना सही नहीं होता. एक मित्र थे ओवरसियर. उनकी पत्नी के ताल्लुकात उसके अधिकारी के साथ हो गए. उन्होंने पत्नी को बहुत समझाया कि वैवाहिक जीवन में ओछी हरकतें ठीक नहीं है. लेकिन उसकी पत्नी ने बात नहीं मानी तो उसने पत्नी को छोड़ दिया. उससे तलाक नहीं लिया, बस उसका एक ही काम रह गया था. तनखा मिलने के बाद दारू पीना और औरतों को गाली बकना, उसे सभी औरतें उसकी बीबी के तरह व्यवहार करने वाली नजर आती थी. कोई अगर किसी औरत की तारीफ उसके सामने कर देता था वह मरने मारने पर उतारू हो जाता था. कब तक किसी की एक पक्षीय बातें आदमी झेल सकता है. मैं नहीं झेल पाया तो उसे टका सा जवाब दे दिया और मिलना ही बंद कर दिया.५-७ साल बाद पता चला कि वह दारू पी-पीकर मर गया. लेकिन मरते दम तक उसने अपनी सोच नहीं बदली. 

ऐसी ही कुछ कहानी मेरी सहपाठिन हेमलता की है, जिस कम्पनी में नौकरी करती थी, उसी के मालिक के साथ अफेयर हो गया। बात काफी आगे तक बढ़ गयी, दो बार गर्भपात कराया, उसका बॉस शादी का आश्वासन देता रहा। लेकिन शादी नहीं की, लिव इन रिलेशन (रखैल) चलता रहा। साल दो साल खर्चा भी मिलता रहा फिर वह भी बंद हो गया। अब इसे भी मर्दों से नफ़रत हो गयी। सब को एक ही लाठी से हांकती है। सभी मर्द उसके लिए बेवफा हैं, एक दिन उसकी माँ ने मुझसे कहा कि इसकी कहीं शादी करवा दो। मेरे मरने के बाद इसका क्या होगा, मुझे सिर्फ यही चिंता सताती है। मैंने दो चार जगह चर्चा चलाई पर कोई परिणाम नहीं निकला। जब उसे पता चला की माँ मेरे माध्यम से शादी की बात चला रही है तो उसने मुझे साफ कह दिया कि वह शादी नहीं करेगी। इस बात को आज लगभग 20 बरस हो गए। वह नारी मुक्ति का झंडा लिए पुरुषों को गरियाते रहती है।औरत और मर्द दोनों ही बेवफा हो सकते हैं. जरुरी नहीं है कि एक ही पक्ष में कोई कमी हो. दोनों पक्षों में कमी हो सकती है. जिससे गाड़ी पटरी पर ना बैठ रही हो. वर्तमान में वर्जनाएं टूट रही है। इस पर छत्तीसगढ़ी की कहावत "हपटे बन के पथरा, फोरे घर के सिल" सटीक बैठती है।

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

धूर्त लोगों की चाल‍-विज्ञापनों का जंजाल ................. ललित शर्मा

जो दिखता है वह बिकता है, पुरानी कहावत है। कहावतें कभी व्यर्थ नहीं होती, अनुभव और तजुर्बों का निचोड़ होती है। हम बाज़ार जाते हैं तो दुकानों के सामने कुछ सैम्पल लटके या रखे दिख जायेगें, जिसे वर्तमान में डिस्प्ले का नाम दिया गया है। डिस्प्ले करना ही प्रथमत: अपनी वस्तु की बिक्री के लिए विज्ञापन करना है। विज्ञापन करने के लिए विभिन्न माध्यमों का सहारा लिया जाता है। जब कस्बे में टूरिंग टाकिज की कम्पनी आती थी तो सजधज कर कम्पनी का कर्मचारी अमीन सयानी की आवाज में फिल्म का धुंवाधार प्रचार करता था और भी इस अंदाज में कि दूर-दूर तक गाँव के फिल्मों के शौक़ीन खिंचे आते थे। चार आना, आठ आना की टिकिट लेकर फिल्म का भरपूर आनंद उठाते थे। इसी तरह का विज्ञापन थियेटर, सर्कस, ड्रामा, नौटंकी, लीलाओं आदि का होता था। विज्ञापन के तौर पर बांटे गए पर्चों को लोग संभाल कर रखते थे। सर्कस आता था तो खेल शुरू होने से एक घंटे पहले से उसकी सर्च लाइट जल जाती थी। इस लाइट के जलते ही आस-पास के 20-25 गाँवों के लोगों को पता चल जाता था कि सर्कस चालू होने वाला है, खा पी कर चला जाए। 

समय के साथ विज्ञापन के माध्यम बदले, टीवी, फिल्मो के टेलर, वीडियो, पत्र-पत्रिकाएँ, वाल रायटिंग, होर्डिंग्स, वस्तु मुफ्त देने का वादा, एक के साथ एक फ्री, दो फ्री और भी बहुत कुछ फ्री। बदलने को बहुत कुछ बदला, नहीं बदला तो वाचिक प्रचार (माउथ पब्लिसिटी) का तरीका नहीं बदला। आज भी हम किसी के मुंह से किसी चीज की बड़ाई सुन कर खरीद लाते हैं। भले ही वह वस्तु घटिया ही क्यों न हो। खरीदने के बाद चाहे गले की हड्डी क्यों न बन जाए। वाचिक प्रचार करने वाले बहुत दूर के नहीं होते, अपने करीबी यार, दोस्त, रिश्तेदार, अड़ोसी-पड़ोसी ही होते हैं। जिनकी बातों पर हम सहज ही विश्वास कर लेते हैं। अविश्वास करने का प्रश्न ही नहीं उठता। इसके साथ एक सोच यह भी रहती है कि "चलो यार अपने ही करीबी ने कहा है, अगर कुछ नुकसान भी हो गया तो सहन कर लेंगे।

वाचिक प्रचार प्रसार सबसे अधिक तन्त्र-मन्त्र एवं असाध्य रोगों की चिकित्सा का होता है। मुफ्त की राय देने वालों को आपकी कोई घरेलु या स्वास्थ्य की समस्या बस दिखाई या सुनाई देनी चाहिए। वे फटाफट आपको पचीसों नुस्खे और इलाज करने वालों के नाम बता देंगे। कैंसर, पीलिया, दमा, एड्स, क्षय रोग, गुप्त रोग, नपुंसकता, बाँझपन, लड़का होना इत्यादि के इलाज के लिए गाँव-गाँव में नीम हकीम बैठे हैं। जबकि इन असाध्य रोगों की चिकित्सा आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं के पास नहीं है। वे असाध्य रोगों की चिकित्सा का दावा खुले आम करते हैं। साथ ही यह प्रचार होता है कि ये शर्तिया इलाज करते हैं। इनके इलाज से मरीज को कोई फर्क नहीं पड़े,  इनकी भेंट दक्षिणा करते करते स्वर्ग सिधार जाये, घर वाले भले ही कंगाल हो जाएँ, परन्तु इनके चेलों का विश्वास कभी नहीं डिगता। वे और ग्राहक पकड़ लाते हैं। बाबाओं में धंधे भी इसी तरह वाचिक प्रचार के आधार पर चलते हैं। अब कुछ हाई टेक बाबा टीवी पर प्रचार करके माला-मोती रुद्राक्ष बेच लेते हैं।
 
विज्ञापन का सकारात्मक पहलू यह है कि बाजार में उपलब्ध वस्तुओं की जानकारी मिल जाती है। बस उनकी गुणवत्ता को परखने की जिम्मेदारी खरीददार की होती है, सावधानी हटी दुर्घटना घटी। दुकानदार का कुछ नहीं बिगड़ना, कटना तो खरबूजे को ही है। पहले अख़बारों और पत्र-पत्रिकाओं में VPP से रेडियो, कैमरा, टेपरिकार्डर, धमाके करने वाली पिस्तौल, आत्मरक्षा करने के उपकरणों के विज्ञापन खूब छपते थे। ऑर्डर देने पर VPP से भेजे जाते थे, पोस्ट आफिस से छुड़ाने पर सिर्फ खोखा ही मिलता था या दो चार बार इस्तेमाल करने के बाद कूड़े के हवाले किया जाता था। ठग अपना उल्लू सीधा कर लेते थे। वर्तमान में यह तरीका थोडा हाई टेक हो गया है। नेट के जरिए ठगी के मामले प्रकाश में आते हैं, लाखों करोड़ों की लाटरी के चक्कर में लोग अपनी जमा पूंजी भी गँवा बैठते है।  बाद में लुटे-पिटे छाती पीटते मिल जाते हैं।

पहले वैवाहिक विज्ञापन नहीं छपते थे, लोग सगे सम्बन्धियों के माध्यम से ही वर-वधु की तलाश करते थे। आवागमन के साधनों एवं फोन इंटरनेट ने दूरियों को नजदीकियों में बदल दिया। रविवारीय अख़बारों के तो दो-तीन पृष्ठ वैवाहिक विज्ञापनों से भरे रहते हैं। विज्ञापन के लिए अख़बार आज भी उपयुक्त साधन हैं, इनकी पहुच गाँव गाँव तक है। इनमे छपे कुछ विज्ञापन तो बहुत ही मजेदार होते हैं। कुछ अख़बारों में देखा कि अपने काम  के प्रभाव को लेकर ज्योतिषियों और तांत्रिकों के बीच प्रतियोगिता जारी है। बानगी देखिए ... फ्री सेवा, फ्री समाधान 15 मिनटों में, स्पेस्लिस्ट- मनचाहा वशीकरण, लव मैरिज, प्यार में धोखा, सौतन-दुश्मन से छुटकारा, मुठकरणी, गडाधन। नोट- मनचाही स्त्री-पुरुष प्राप्त करवाने की 100% गारंटी। साथ ही यह भी दावा है कि - मुझसे पहले काम करने वाले को 25 लाख का इनाम। (नाम-पता कुछ नहीं लिखा है सिर्फ मोबाईल नंबर छपा है।

अगला विज्ञापन है A 2 Z समस्या का समाधान। 17 वर्षों से स्थायी पता, पति-पत्नी में अनबन, मनचाहा वशीकरण, प्यार एवं विवाह, सौतन-दुश्मन से छुटकारा, लक्ष्मी प्राप्ति, कोर्ट कचहरी में सफलता, धोखा, शारीरिक पीड़ा, कर्ज मुक्ति, व्यापार में हानि, गृह क्लेश आदि A 2 Z समस्या का समाधान। अगले विज्ञापन दाता इनके भी बाप हैं .... पं.......शास्त्री (गोल्ड मेडलिस्ट) खुला चैलेन्ज, मेरे से पहले काम करने वाले को मुंह मांगा इनाम। गृह क्लेश,सौतन-दुश्मन से छुटकारा, पति-पत्नी में अनबन, लव मैरिज का गारंटेड 2 घंटे में समाधान। सभी समस्या का समाधान मात्र-700/- में। बिछड़ा प्यार दुबारा वापस लाने में स्पेस्लिस्ट। अगला विज्ञापन दाता इनका भी दादा निकला। (कोई फीस नहीं) पहले काम फिर इनाम, समस्या कैसी भी हो जड़ से खत्म घर बैठे। स्पेस्लिस्ट - मनचाही शादी, किया कराया, जादू टोना, संतान सुख, गृह क्लेश, मांगलिक/ काल सर्प पूजा, लाटरी सट्टा, सौतन-दुश्मन खात्मा, गड़ाधन। नोट- मुझसे पहले काम करने वाले को 51 लाख रुपए इनाम।100% गारंटेड समाधान। नकली लोगों से बच के रहें।

यह है विज्ञापनों का जंजाल, धूर्त लोग जाल फैलाये मुर्गा फंसने का इंतजार करते हैं और जिस दिन मुर्गा फंस जाये उस दिन त्यौहार मना लेते हैं। ये तो छोटे-मोटे लोग है जो लघु विज्ञापनों पर काबिज हैं। 5 सप्ताह में गोरा बनाने वाली बड़ी कम्पनियों के के करोड़ों अरबों के विज्ञापन छपते हैं। किसी को गोरा होते मैंने आज तक नहीं देखा। उत्तर भारत में गोरा करने वाली इन क्रीमों का अधिक असर नहीं पड़ता, पर दक्षिण भारत में लोगों का क्रीम पावडर का खर्च अधिक है। बेचारे बरसों से गोरा होने के लिए क्रीम लगा रहे हैं। पर गोरे एक भी नहीं दिखाई देते। गोरे होने की आदिम मानसिकता का फायदा बड़ी कम्पनियां उठा रही हैं। एक कम्पनी है हाईट बढ़ाने की दवाई के विज्ञापन करके अच्छी बिक्री कर रही है और लाभ कमा रही है। ऐसे ही हजारों विज्ञापन  ग्राहक को उल्लू बनाने के लिए ताक रहे हैं, इनके गोरख धंधे से जो बच जाये वही बुद्धिमान है।

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

प्राचीन बंदरगाह ....................... ललित शर्मा

प्राचीन बंदरगाह
महर्षि महेश योगी की जन्म भूमि पाण्डुका से आगे सिरकट्टी आश्रम से पहले मगरलोड़ और मेघा की ओर जाने वाले पुल के किनारे नदी में लेट्राईट को तोड़ कर बनाई गयी कुछ संरचनाएं दिखाई देती हैं।   मैने कयास लगाया कि यह अवश्य ही बंदरगाह है। नदी में उतर कर बंदरगाह का निरीक्षण किया एवं कुछ चित्र लिए। बंदरगाह की गोदियों में घूमते हुए कई तरह के विचार आ रहे थे। कौन लोग यहाँ से व्यापार करते थे? यह बंदरगाह किस समय बना? किसने बनाया? आदि आदि। इन प्रश्नो के उत्तर बाद में ढूंढेगे, पहले सिरकट्टी आश्रम देख लें, नाम तो बहुत सुना था पर देखा नहीं था। पैरी नदी के तट पर कुटेना ग्राम का सिरकट्टी आश्रम स्थित है। आश्रम का नाम सिरकट्टी इसलिए पड़ा कि यहाँ मंदिर के अवशेष के रुप में सिर कटी मूर्तियाँ प्राप्त हुई, जिन्हे बरगद के वृक्ष के नीचे स्थापित कर दिया। तब से इसे सिरकट्टी आश्रम के नाम से जाना जाता है।

सिर कट्टी आश्रम 
यहाँ बैरागी पुनीतराम शरण से चर्चा हुई। उन्होने बताया कि महाराज भुनेश्वरीशरण दास ने 16 वर्ष की आयु में सन्यास ले लिया था। उन्हे ग्राम कुटेना स्थित चंडी मां ने स्वप्न में इस स्थान की जानकारी दी। तो ग्राम वासियों के सहयोग के वे इस स्थान पर बैठ गए और यज्ञ करने लगे। आश्रम में स्थित सिरकटी मूर्तियाँ एक दीमक की बांबी से प्राप्त हुई थी। उन्होने बताया कि भुनेश्वरीशरण दास को कुछ द्रव्य के साथ दो शिवलिंग भी यहाँ प्राप्त हुए, जिसमें से पेड़ के नीचे एक स्थापित है, दूसरा मंदिर में स्थापित है। इस स्थान पर सुदूर प्रांतों  से संत आते हैं, संतों का आगमन 1963 से हो रहा है, अब वे यहीं स्थायी रुप से बस कर आश्रम की सेवा कर रहे हैं। आश्रम में जाति समाज वालों ने अपने भवन बना रखे हैं। यहाँ लगभग सौ अधिक गाय भैस हैं एवं आश्रम के नाम से लगभग 40-50 एकड़ जमीन है। जो कुटेना, पाण्डुका, जटिया सोरा, पोंड, गाड़ा घाट एवं फ़िंगेश्वर आदि गांवों में है।

प्राचीन बंदरगाह
अब चर्चा करते हैं बंदरगाह की, मानव सभ्यता का उद्भव एवं विकास समुद्र तथा नदियों के किनारे हुआ। जलमार्ग ही आवागमन एवं परिवहन का प्रमुख साधन था। प्राचीन काल में थलमार्ग से परिवहन कम ही होता था। जितनी भी प्राचीन राजधानियाँ एवं शहर हैं, सभी नदियों के तट पर ही स्थित हैं। अन्य राष्ट्रों से व्यापार जल मार्ग से होता था तथा वर्तमान में भी हो रहा है। वास्कोडिगामा, कोलंबस इत्यादि यायावर भी जल मार्ग से ही भारत में प्रविष्ट हुए। जल परिवहन द्वारा व्यापार करना थल परिवहन से कम लागत में हो जाता है। नाव एवं बड़े जहाजों के माध्यम से माल एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया जाता है। ऋग्वेद में जहाज और समुद्रयात्रा के अनेक उल्लेख है (ऋक् 1/25/7, 1/48/3, 1/56/2, 7/88/3-4 इत्यादि)। प्रथम मंडल (1-116-3) की एक कथा में 100 डाँड़ोंवाले जहाज द्वारा समुद्र में गिरे कुछ लोगों की प्राणरक्षा का वर्णन है। इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि ऋग्वेद काल, अर्थात् लगभग 2,000 - 1,500 वर्ष ईसा पूर्व, में यथेष्ट बड़े जहाज बनते थे और भारतवासी समुद्र द्वारा दूर देशों की यात्रा करते थे। इन जहाजों के द्वारा लाए गए माल को उतारने के लिए गोदी या बंदरगाहों का निर्माण किया जाता था। छत्तीसगढ की प्रमुख नदी चित्रोत्पला गंगा महानदी के जल मार्ग से व्यापार होता था। महानदी के तट पर स्थित प्राचीन नगर राजधानी सिरपुर के उत्खन में व्यापार से संबंधित वस्तुएं एवं प्रमाण प्राप्त हो रहे हैं। 

महानदी उद्गम स्थान - भीतररास 
चित्रोत्पला गंगा महानदी का उद्गम सिहावा नगरी के भीतररास ग्राम से हुआ है। भीतररास में महानदी दक्षिण की ओर प्रवाहित होती प्रतीत हुई। महानदी के उद्गम स्थान पर मेरा दो बार जाना हुआ। महानदी धमतरी जिले के सिहावा नगरी स्थित भीतररास ग्राम से निकल कर 965 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी में समाहित होती है। इसकी सहायक नदियाँ हसदो, जोंक, शिवनाथ, पैरी एवं सोंढूर नदियाँ है। पैरी, सोंढूर एवं महानदी का त्रिवेणी संगम पद्मक्षेत्र राजिम मे होता है। इस संगम पर कुलेश्वर (उत्पलेश्वर) महादेव का मंदिर है। जहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को मेला भरता है, जिसे अब राजिम कुंभ का नाम दिया गया है। पैरी नदी का उद्गम मैनपुर से लगे हुए ग्राम भाटीगढ से हुआ है। पहाड़ी पर स्थित पैरी उद्गम स्थल से जल निरंतर रिसता है। अब इस स्थान पर छोटा सा मंदिर भी बना दिया गया है। पैरी और सोंढूर नदी का मिलन रायपुर-गरियाबंद मार्ग पर स्थित मालगाँव के समीप मुहैरा ग्राम के समीप हुआ है। यहाँ से चल कर दोनो नदियाँ महानदी से जुड़ जाती है। राजिम पद्मक्षेत्र पैरी नदी के तट पर स्थित है। 

डॉ विष्णु सिंह ठाकुर एवं यायावर 
पैरी नदी के तट पर कुटेना में स्थित यह बंदरगाह (गोदी) पाण्डुका ग्राम से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। अवलोकन करने प्रतीत होता है कि इस गोदी का निर्माण कुशल शिल्पियों ने किया है। इसकी संरचना में 90 अंश के कई कोण बने हैं। कठोर लेट्राईट को काटकर बनाई गयी गोदियाँ तीन भागों में निर्मित हैं, जो 5 मीटर से 6.60 मीटर चौड़ी तथा 5-6 मीटर गहरी हैं। साथ ही इन्हें समतल बनाया गया, जिससे नाव द्वारा लाया गया सामान रखा जा सके। वर्तमान में ये गोदियाँ नदी की रेत में पट चुकी हैं। रेत हटाने परगोदियाँ दिखाई देने लगी। प्रख्यात इतिहासकार एवं पुरात्वविद डॉ विष्णु सिंह ठाकुर से इस विषय मेरी चर्चा हुई। उन्होने इसे चौथी शताब्दी ईसा पूर्व माना। बताया कि इस स्थान पर महाभारत कालीन मृदा भांड के टुकटे भी मिलते हैं। नदी से "कोसला वज्र" (हीरा) प्राप्त होता था तथा जल परिवहन द्वारा आयात-निर्यात होता था।

गरियाबंद मार्ग पर मालगाँव 
गरियाबंद 15 किलोमीटर पर पैरी नदी के तट पर स्थित एक ग्राम का नाम मालगाँव है। यहाँ नावों द्वारा लाया गया सामान (माल) रखा जाता था। इसलिए इस गांव का नाम मालगाँव पड़ा। मालगाँव में पैरी नदी के तट पर आज से लगभग 10-15 वर्ष पूर्व तक एक रपटा (छोटा पुल) था जो नदी में पानी आने के कारण वर्षाकाल में बंद हो जाता था। जिससे गरियाबंद से लेकर देवभोग एवं उड़ीसा तक जाने वाले यात्री प्रभावित होते थे। नाव द्वारा नदी पार कराई जाती थी और उस पार बस गाड़ी इत्यादि के साधन से लोग यात्रा करते थे। वर्तमान में इस नदी पर पुल बनने के कारण बरसात में भी मार्ग खुला रहता है। वर्षाकाल में रायपुर से देवभोग जाने वाले यात्री मालगाँव से भली भांति परिचित होते थे, क्योंकि यहीं से पैरी नदी को नाव द्वारा पार करना पड़ता था। यहाँ से महानदी के जल-मार्ग के माध्यम द्वारा कलकत्ता तथा अन्य स्थानों से वस्तुओं का आयात-निर्यात हुआ करता था। पू्र्वी समुद्र तट पर ‘कोसल बंदरगाह’ नामक एक विख्यात बन्दरगाह भी था। जहाँ से जल परिवहन के माध्यम से व्यापार होता था।  इससे ज्ञात होता है कि वन एवं खनिज संपदा से भरपूर छत्तीसगढ प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है। नदियाँ इसे धन धान्य से समृद्ध करते रही हैं।
प्राचीन बंदरगाह

बुधवार, 7 नवंबर 2012

पंचकोसी यात्रा राजिम

राजिम का त्रिवेणी संगम 
त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर नगर से प्राचीन नगर एवं जमीदारी फिंगेश्वर 61 किलोमीटर पर 20058' 7.50"N 82002'48.56" E पर स्थित है। इस नगर से होकर महासमुंद की ओर जाना कई बार हुआ पर फणीकेश्वर महादेव के दर्शन करने अवसर प्राप्त नहीं हुआ। 1992 में वर्तमान कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू के साथ पंचकोसी यात्रा करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। जिसे अब भूल चुका था। पुन: इस मार्ग पर जाने का अवसर तब आया जब कोलकाता से सुष्मिता बसु मजुमदार अपने दो शिष्यों ऋतुपर्ण चट्टोपाध्याय एवं स्मिता हालदार के साथ पंचकोसी की अध्ययन यात्रा पर आई। सुष्मिता  University of  Calcutta में Assoicate Professor के पद पर कार्यरत हैं। हम प्रात: 9.30 पर पंच कोसी यात्रा के अभनपुर से चल पड़े।
सुष्मिता-ऋतुपर्ण-स्मिता नदी पार करते हुए 
पंचकोसी यात्रा का प्रारम्भ भगवान श्री राजीव लोचन की नगरी राजिम युगो-युगो से ॠषि मुनियों, महात्माओं द्वारा सृजित आध्यात्मिक उर्जा से सम्पन्न पतित पावन नगरी से होता है। कहते हैं कि भगवान विष्णु ने गोलोक से सूर्य के समान प्रकाशित पांच पंखुडियों से युक्त कमल पृथ्वी पर गिराया था । पांच कोस के विस्तार से युक्त उक्त कमल के परिधि क्षेत्र के अन्तर्गत भगवान शिव के पांच अधिवास है जो पंचकोसी के नाम से विख्यात है । राजिम क्षेत्र को पद्म क्षेत्र भी कहा जाता है। कमल क्षेत्र राजिम स्थित पंचकोसी क्षेत्र की परिक्रमा पवित्र अगहन एवं माघ माह में प्रारंभ होती है । यात्रा का प्रारंभ ब्रम्हचर्य आश्रम के समीप स्वर्ण तीर्थ घाट के समीप चित्रोत्पला में स्नान करने के पश्चात कमल क्षेत्र के स्वामी राजीव लोचन भगवान के मंदिर जाकर पूजन से करते हैं । वहां से संगम पर स्थित उत्पलेश्वर शिव (कुलेश्वर नाथ) दर्शन पूजन करके पटेश्वर महादेव के दर्शन करने पटेवा ग्राम की ओर प्रस्थान करते हैं यह यात्रा का प्रथम पड़ाव है ।
पंचकोसी 
द्वितीय पड़ाव के रूप में चम्पेश्वर महादेव चंपारण (चंपाझर) ब्रह्मिकेश्वर (बम्हेश्वर) महादेव फणीकेश्वर महादेव, फिंगेश्वर तथा यात्रा के अंतिम पड़ाव के रूप में कर्पूरेश्वर महादेव कोपरा के दर्शन पूजन करके राजिम में आकर सोमेश्वर महादेव का दर्शन पूजन करके यात्रा का समापन कुलेश्वर महादेव की पूजा अर्चना से होता है । ये पांचो शिव मंदिर कुलेश्वर से 5 कोस की दूरी पर स्थित है । इसीलिए ये पंचकोसी परिक्रमा के नाम से जाने जाते हैं । हमने अपनी पंचकोसी यात्रा का प्रारंभ कुलेश्वर महादेव (उत्पलेश्वर शिव) के दर्शन से किया। महानदी में पानी चल रहा था। कुलेश्वर मंदिर तक जाने के लिए हमें राजिम पुल पार करके नयापारा नगर होते हुए बेलाही घाट पार करके लोमस ऋषि आश्रम तक जाना होता उसके बाद हम कुलेश्वर महादेव पहुँचते। इससे समय कुछ अधिक लगता। इसलिए हमने राजीवलोचन मंदिर से नदी पार करके ही कुलेश्वर महादेव जाना ठीक समझा।
कुलेश्वर महादेव 
संगम पर घुटनों तक पानी चल रहा था। हमने संभल कर नदी पार की एवं कुलेश्वर महादेव के दर्शन किए। मान्यता है कि दंडकारण्य प्रवास के दौरान माता सीता ने स्वयं अपने हाथों से इस शिवलिंग का निर्माण कर भगवान शिव की पूजा की थी। कुलेश्वर महादेव सोंढूर, पैरी एवं महानदी के त्रिवेणी संगम पर स्थित हैं। इस मंदिर का अधिष्ठान अष्टकोणीय है। मंदिर निर्माण करने वाले वास्तुकार ने नदी के प्रवाह को देखते हुए इसे अष्ट कोण का निर्मित किया। जिससे नदी के प्रवाह से मंदिर को कोई हानि न पहुचे। मंदिर की जगती तल से 17 ऊँची है तथा इसके निर्माण में छोटे आकार के प्रस्तर खण्डों का प्रयोग हुआ है। जगती पर पूर्व दिशा में सती स्मारक है जिसका वर्तमान में साक्षी गोपाल के नाम से पूजन हो रहा है। नदी के तल से मंदिर में पहुचने के लिए 22 पैड़ियाँ थी, कुछ वर्ष पूर्व नीचे दबी 9 पैड़ियाँ और प्रकाश में आने पर अब कुल 31 पैड़ियाँ हो गयी है। यहाँ एक शिलालेख भी लगा है। कुलेश्वर मंदिर से हम सिरकट्टी की और चल पड़े।
पैरी नदी के किनारे पर प्राचीन बंदरगाह 
सिरकट्टी में शीशविहीन प्रतिमाएं होने के कारण इस स्थान का नाम सिरकट्टी पड़ गया। राजिम से पांडुका होते हुए ग्राम कुटेना से पैरीनदी के मेघा जाने वाले पुल के समीप संत भुनेश्वरीशरण का आश्रम स्थित है। यहीं पर सिरकटी प्रतिमाएं पीपल के वृक्ष के नीचे विद्यमान हैं। सिरकट्टी हमारी पंचकोसी यात्रा में शामिल नहीं था, पर यहाँ पर  पैरी नदी के किनारे पर प्राचीन बंदरगाह के अवशेष मिलते हैं। इसका अवलोकन करना महत्वपूर्ण था। लेट्राइट को काट कर बनाया गया यह बंदरगाह किसी ज़माने में व्यापार के लिए नौकाओं से आने वाले व्यापरियों के लिए महत्व रखता होगा। बड़ी नौकाओं से माल उतार कर छोटी नौकाओं से गोदी में रखा जाता होगा। इस नदी के दक्षिण पूर्व की तरफ आगे बढ़ने पर गरियाबंद जिले का प्रवेशद्वार मालगांव पड़ता है। इस गांव का इस्तेमाल कभी माल रखने के लिए होता होगा। इसलिए पैरी किनारे के इस गाँव का नाम माल गाँव पड़ा।
फणीकेश्वर महादेव मंदिर 
सिरकट्टी से कोपरा जाने पर दाहिने तरफ फिंगेश्वर से लिए बोरसी होते हुए मार्ग जाता है। हम फिंगेश्वर फणीकेश्वर महादेव के दर्शन करने पहुचे। श्रीमद राजीवलोचन महात्म्य में लिखा है - महानदी देवधुनी पवित्रप्राची तटे विश्रुतनामधेया। फिनगेश्वरारव्या नगरी विभाति फणीश्वरो यत्र गणैर्विभाति ।।२।। यह मंदिर 10 वीं शताब्दी का है। शिल्प की दृष्टि से भी उत्तम है। मंदिर के गर्भ गृह में महादेव विराजमान हैं। बाँई तरफ गणेश जी एवं चामुंडा की प्रस्तर प्रतिमाएं विराजमान हैं। दाईं तरफ  प्रस्तर का निर्मित एक कलश रखा हुआ है। यहाँ एक पुजारी ने बताया कि छैमासी रात में इस मंदिर का निर्माण हुआ था। जब कलश चढ़ने का समय हुआ तो दिन निकल आया और कलश नहीं चढ़ सका। तब से इसका कलश भूमि पर ही रखा हुआ है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर प्रस्तर मूर्तियाँ लगी हैं, जिनमे रामायण, महाभारत के दृश्यों के साथ विष्णु अवतार प्रदर्शित है।  राम द्वारा शिला बनी अहिल्या उद्धार का भी सुन्दर चित्रण किया गया है।
फणीकेश्वर महादेव मंदिर की मिथुन मूर्तियाँ 
मिथुन मूर्तियों की प्रधानता दिखाई दी मुझे। अभी तक देखे हुए छत्तीसगढ़ के मंदिरों में से सबसे अधिक मिथुन मूर्तियाँ इसी मंदिर में दिखाई देती हैं। यहाँ की मूर्तियों के समक्ष खजुराहो का मिथुन मूर्ति शिल्प भी फीका दिखाई देता है। मैथुनरत युगल कामसूत्र के विभिन्न आसनों को प्रगट करते हैं। मंदिर की भित्तियों पर लालित्यपूर्ण मिथुन मूर्तियों का प्रदर्शन दर्शनीय है। ये मूर्तियाँ मंदिर की तीन दीवारों पर लगायी गयी हैं। मंदिर के पुजारी से कर्पुरेश्वर के विषय में पूछने पर पता चला की कोपरा में ही स्थित मंदिर को कर्पुरेश्वर कहा जाता है। राजिम महात्म्य में इसे बाणेश्वर से कर्पुरेश्वर नाम से जाना जाता है। अब हमें पुन: कोपरा जाना पड़ा।
कर्पुरेश्वर महादेव (कोपेश्वर)
कोपरा पहुचते तक शाम होने लगी थी। मौसम ख़राब था। दोपहर तक वर्षा हो रही थी। अपरान्ह मौसम थोडा खुलने के कारण वर्षा से राहत मिल गयी। कोपरा आना मेरा कई बार हो चुका है, गत वर्ष भी कोपरा आया था। गाँव के अंतिम छोर पर श्मशान के किनारे पर तालाब के बीच में कर्पुरेश्वर महादेव का मंदिर बना है। यह मंदिर पंचकोसी यात्रा में शामिल है। मंदिर में शिवजी विराजमान हैं। गणेश की भी प्राचीन मूर्ति रखी हुयी है। कर्पुरेश्वर के दर्शन करने के पश्चात् अब हम पुन: राजिम की ओर चल पड़े। हमने तय किया कि सबसे पहले पाटेश्वर महादेव के दर्शन करेगे इसेक पश्चात् चंपारण पहुच कर चम्पेश्वर महादेव के दर्शन करते हुए अभनपुर पहुचेंगे। पाटेश्वर महादेव राजिम से लगभग 5 किलोमीटर अभनपुर मार्ग पर ग्राम कुर्रा से चिपरीडीह जाने वाले मार्ग पर 1 किलोमीटर पर पटेवा  ग्राम में स्थित है।
चम्पेश्वर महादेव (चंपारण )
पटेवा पहुचते तक अँधेरा हो गया था, गाँव में बिजली जल चुकी थी। पटेवा के अंतिम छोर पर एक बड़ा तालाब है, इसके पार पर पाटेश्वर महादेव विराजे हैं। हम पहुचे तो मंदिर बंद था। बाहर से ही हम दर्शन करके अपने अगले पड़ाव की ओर चल पड़े। अनुमान है कि पटेवा का तालाब प्राचीन है, इसका निर्माण भी 10 वीं शताब्दी के आस-पास ही हुआ होगा। कुर्रा-पटेवा से चम्पेश्वर (चम्पारण) 17 किलोमीटर है। चम्पेश्वर पहुचने पर रात हो चुकी थी। सर्दियों में दिन छोटा होने पर सूर्यास्त जल्दी ही हो जाता है।  जब हम मंदिर में पहुंचे तो संध्या आरती के लिए भगवान का श्रृंगार हो रहा था। तब तक हम बल्लभाचार्य की बैठक के दर्शन कर आए। तब तक चम्पेश्वर महादेव की आरती प्रारंभ हो चुकी थी। आरती प्रसाद लेकर हमारे अभनपुर पहुँचते तक 8 बज चुके थे। इस तरह हमारी पंचकोसी अध्ययन यात्रा संपन्न हुई।

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

एक स्थान के दो नाम .....Sirpur Chhattisgarh...... ललित शर्मा

श्री अरुण कुमार शर्मा 
प्राम्भ से पढ़ें 
सिरपुर का दो दिन और दो रात का स्वपोषित पैकेज पूर्णता की और था, अर्थात हम सिरपुर भ्रमण के अंतिम चरण की और बढ़ रहे थे। आर्किओलोजी में कुछ भी अंतिम नहीं होता। नित नई खोजें सामने आती हैं और अन्य प्रमाण मिलने पर पुरानी थ्योरी बदल जाती है। हम भी सिरपुर की पुरातात्विक धरोहरों को पूरा नहीं देख पाए, पर उत्खनित से लेकर जमीन में दबी हुयी पुरातात्विक धरोहरों के साथ मुख्य-मुख्य स्थानों को देख परख लिया। बाकी अगले चरण के लिए छोड़ दिया। जब कभी दुबारा आयेंगे तो बचे हुए स्थानों को देखेंगे। तब तक अरुण कुमार शर्मा जी की टीम और कुछ खोद कर निकाल देगी जमीन के नीचे से। वह हमारे लिए नया होगा। फिर आयेगे सिरपुर उसे देखने। इतना तो मानना पड़ेगा अरुणकुमार शर्मा और सिरपुर एक स्थान के दो नाम हो गए हैं। 

पर्यटक सूचना केंद्र
अब हम पहुच रहे थे छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के पर्यटक सूचना केंद्र पर। सिरपुर प्रवेश करने के पूर्व दायीं और पर्यटक सुचना केंद्र का सुन्दर भवन निर्मित है। यहाँ प्रवेश करने पर हमें लीना साहू मिलती हैं, ये पर्यटक सूचना सहायक के पद पर कार्यरत हैं। इन्होने टेबल पर एक अतिथी पुस्तिका रखी हुयी है, जिसमे यहाँ आने वाले पर्यटकों से फीड बैक ली जाती है। वे अपनी टिप्पणी इस पुस्तिका में दर्ज करते हैं। मुझे नहीं लगता कि इस पुस्तिका में दर्ज पर्यटकों की टिप्पणी को कोई जिम्मेदार अधिकारी पढकर इनकी शिकायतों या सलाहों पर कोई उचित कार्यवाही करता होगा। पर इतना तो तय है कि सिरपुर आए पर्यटक का नाम पुस्तिका में दर्ज होने से वह भ्रमणकर्ताओं की सूची में अपना नाम अवश्य दर्ज करा लेता है। मैंने अपनी टिप्पणी पुस्तिका में दर्ज की। इस केंद्र के प्रभारी सूचना सहायक के रूप में सचिन भोई कार्यरत हैं।

पर्यटक सूचना केंद्र
छतीसगढ़ पर्यटन मंडल के रिसोर्ट, मोटेल एवं कॉटेज हैं, जिनका आरक्षण सूचना केन्द्रों से हो जाता है। पर्यटन मंडल का मोटेल सिरपुर में निर्माणाधीन है। मोटेल अभी बनकर तैयार हुआ नहीं है, इसके लिए कुक की भरती अभी से कर ली  गयी है। धनराज लाल नाग की नियुक्ति यहाँ कुक के पद पर है, उसने हमें उम्दा चाय पिलाई, इससे जाहिर है कि खाना भी स्वादिष्ट और बेहतरीन बनाता होगा। सिरपुर में मौजूद लोक निर्माण विभाग के रेस्ट हाउस की बुकिंग यहाँ से नहीं होती। उसकी बुकिंग महासमुद के डिप्टी कलेक्टर या विभागीय अनुविभागीय अधिकारी करते हैं। स्थानीय रेस्ट हाउस के आरक्षण का अधिकार भी पर्यटक सूचना केन्द्रों को दिया जाना चाहिए।

पर्यटक सूचना केंद्र
छतीसगढ़ पर्यटन मंडल के सूचना केंद्र भारत में दिल्ली, कोलकाता, अहमदाबाद, नागपुर, भोपाल, विशाखापत्तनम सहित छत्तीसगढ़ में बिलासपुर, रायपुर, रायपुर विमानतल, डोंगरगढ़, सिरपुर, धमतरी, पुरखौती मुक्तांगन उपरवारा, चंपारण्य, दुर्ग, जगदलपुर में स्थापित हैं। जो शासकीय कार्य दिवस में खुले रहते हैं। यहाँ से छत्तीसगढ़ भ्रमण के विषय में पूर्ण जानकारी मिल जाएगी। पर्यटन विभाग ने ब्रोसर भी छपवा रखे हैं। उनमे भी स्थान विशेष के विषय में प्रारंभिक जानकारी दी गयी है। छतीसगढ़ पर्यटन मंडल के मुख्य कार्यालय का फोन नंबर 91-771-4028636, 4066416, फैक्स - 91-771-4066425 एवं email - visit@gmail.com है। यहाँ से सम्पर्क करके जानकारी ली जा सकती है।

यायावर का नमस्ते-धसकुड के झरने से 
पर्यटक सूचना केंद्र से हम 1 बजे घर के लिए रवाना हो गए। लौटते हुए क्रिकेट स्टेडियम से होते हुए, नयी राजधानी पहुचे। यहाँ नवम्बर में उद्घाटन की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हैं। सरकार जो चाहे वह कर सकती है। राजधानी के मुख्य स्क्वेयर का निर्माण एवं सौंदर्यीकरण द्रुत गति से चल रहा है, 6-7 फुट के वृक्ष चौक में लग चुके हैं। कुछ दिनों में चौक की रौनक बढ़ने वाली है। राजधानी के समस्त रोड इसी चौक से होकर गुजरते हैं। भले ही राजधानी को आबाद होने 10-20 बरस लग जाएँ,  यह भारत के किसी भी प्रदेश की राजधानियों से खूबसूरत होगी इतना तो तय है। जब तक मेरी यह पोस्ट प्रकाशित होगी तब तक राजधानी का उद्घाटन हो चूका होगा। लगभग 4 बजे शाम को तीन दिन की यात्रा के बाद घर पहुच गए। राजीव से विदा ली, उसे आगे कोंटा तक सफर करना था और शाम 5 बजे तक  पहुँचने की जल्दबाजी थी। ......... मिलते हैं ब्रेक के बाद, फिर चलेंगे किसी अन्य सफ़र पर। जारी है … आगे पढें

सोमवार, 5 नवंबर 2012

करबीन टीले में दबे (unexplore) प्राचीन युगल मंदिर ..Sirpur Chhattisgarh......... ललित शर्मा

अवैध कटाई 
प्राम्भ से पढ़ें 
रबा-करबीन टीला के विषय में प्रभात सिंह से पूर्व में चर्चा हुई थी। पूर्व में जब सिरपुर आया था तो समय नहीं था कि सभी जगहों पर जा सकूँ। इस दौरे में हमने दो दिन निर्धारित किये थे।दिन में भ्रमण करना और रात में देखी गयी जगहों पर चर्चा करना। इन दो दिनों में विभिन्न विषयों पर खूब चर्चा हुयी। तीवरदेव विहार परिसर में बौद्ध भिक्षुणियों के लिए निवास के लिए पृथक व्यवस्था थी। जहाँ तक देखा गया है सन्यासियों के साध्वियों के निवास नहीं रहते। महिलाओं को विहारों में निवास को अनुमति बुद्ध ने ही दी थी और अनुमति देते हुए अपने शिष्य आनंद से  कहा था ..... आनंद! मैंने जो धर्म चलाया वह पांच हजार वर्ष तक टिकने वाला था लेकिन अब वह सिर्फ पांच सौ वर्ष तक ही चलेगा, क्योंकि हमने स्त्रियों को संघ में शामिल होने की प्रथा चला दी है।"

जंगल के राही, प्रभात सिंह और राजीव 
सिरपुर से लगभग 5-6 किलोमीटर दक्षिण में मुख्य मार्ग से लगभग आधे किलोमीटर पर करबीन तालाब है। छत्तीसगढ़ी में करबा-करबीन हिजड़ों को कहा जाता है। अनुमान है सिरपुर राजधानी में हिजड़ों के निवास की व्यवस्था आम रिहायश से पृथक होगी या इस तालाब का निर्माण किसी हिजड़े ने कराया होगा या हिजड़ों के निवास के समीप होने के कारण इस तालाबा का नाम करबिन तालाब रूढ़ हुआ होगा। मुख्य मार्ग से जंगल में जाने के लिए कार का मार्ग नहीं है। हमने कार सड़क पर ही छोड़ दी और पैदल ही जंगल में प्रवेश कर गए। नई जगह देखने का लालच यहाँ तक खींच लाया था। धूप सिर पर चढ़ रही थी। बरसात के मौसम में विभिन्न तरह के कीटों का जन्म होता है, कुछ का प्रजनन काल बरसात के बाद शरद के मौसम में। इनमे मकड़ियाँ प्रमुख हैं, जगह-जगह बड़ी-बड़ी मकड़ियों ने जले बना रखे हैं। इनसे बचते हुए चलना जरुरी है, अन्यथा थोडा सा भी मकड़ी का जहर विकलांग बनाने के लिए काफी है।

शिव मंदिर के भग्नावशेष - स्तम्भ 
जंगल में लकड़ियों की चोरी वन विभाग के सहयोग से बेखटके होती है, पहले वृक्ष को सुखा लिया जाता है, जड़ कमजोर होने पर काट कर इस्तेमाल कर लेते हैं। अगर कोई दबंग है तो हरे-भरे वृक्ष ही ईमारती लकड़ी में तब्दील हो जाते हैं। ऐसा ही नजारा हमें जंगल में दिखाई दिया। एक जगह बीजा का वृक्ष काट कर पटक रखा था। समय मिलते ही उसे पार किया जाएगा। आगे चलने पर कुछ वृक्ष और कटे दिखाई दिए। करबीन तालाब का दृश्य मनोहारी लगा। तालाब में कमल-कुमुदिनी खिले हुए थे। उसके आस पास की झाड़ियों में पिकनिक कर्ताओं के छोड़े गए अवशेष दिखाई दे रहे थे। जहाँ एक मुर्गा और एक बोतल दारू का इंतजाम हो जाये, वहीँ पिकनिक हो जाती है। मुर्गे के पंख उड़ रहे थे, साथ ही अंग्रेजी के एक ब्रांड की बोतल डिस्पोजल गिलासों के साथ दिखाई दे रही थी।

शिव मंदिर की चौखट के अवशेष 
थोड़ी दूर चलने पर मकोई की कटीली घनी झाड़ियाँ प्रारंभ हो गयी, यहाँ तो जंगल में कोई पगडंडी भी नहीं थी। इस स्थान पर कोई आता हो तो पगडंडी बनेगी। हम सामने टीला देख कर उसी दिशा में चल रहे थे। इस स्थान पर गर्मियों के मौसम में प्रभात सिंह पूर्व में आ चुके हैं, उस समय सभी झाड़ियाँ सूख जाती हैं, रास्ता दूर से ही दिखाई देता है। टीले में कुछ दूरी तक ईंटों के टुकड़े बिखरे हुए हैं साथ ही चारों तरफ पत्थरों का भंडार भी लगा हुआ है। यह स्थान भी खजाने के चोरों से सुरक्षित नहीं है। टीले पर पहुँचने पर पत्थरों एवं ईंटों के दो ऊँचे ढेर दिखाई दिए। ढेर पर चढ़ने पर दिखा की यहाँ किसी ने पहले ही खुदाई कर डाली है। एक गड्ढे में काली हांड़ी और स्टील की छोटी कटोरी पड़ी थी। इससे अनुमान है कि यह "हंडा" (सोने की मोहरों से भरी हांड़ी) ढूंढने वालों की करतूत है।

यायावर टीले पर 
दूसरे ढेर पर दो स्तम्भ दिखाई दे रहे थे, उससे थोड़ी ही दूर पर शिव मंदिर में जल निकासी के लिए बने गई जलहरी दिखाई दे रही थी , पत्थर पर खोद कर नाली को जलहरी का रूप दिया गया है। ढेर के ऊपर मंदिर की चौखट के दो पत्थर भी स्पष्ट दिख रहे थे। उत्तर दिशा में जलहरी होने पर अनुमान है कि यह मंदिर पूर्वाभिमुख रहा होगा। प्रभात सिंह ने बताया कि यहाँ किसी बाबा ने भी कुटिया बना कर डेरा डाल लिया था, जोत भी जलाने लगा था, लेकिन दाल नहीं गलने पर डेरा-डंडा उठा कर चलते बना। पहले टीले से तो स्पष्ट है कि यह विशाल शिव मंदिर रहा होगा। इसके स्तम्भ भी विशाल हैं। दूसरे टीले के विषय में उत्खनन के उपरांत ही जानकारी मिल पायेगी कि उसके नीचे क्या दबा हुआ है। हमने कुछ चित्र लिए और लौट चले।

गुल्लू  का पेड़ (गिदोल)
मंदिर टीले से लौटते हुए मुझे एक बांस की लाठी मिल गयी, पसीने आने के कारण पसीना चुसने वाली छोटी मक्खियों ने परेशान कर दिया। झाड़ियों के बीच से निकलने के कारण पसीना खुजा रहा था। बांस की लाठी का उपयोग मैंने मकड़ियों का जाला हटाने में किया। रास्ते में एक खूबसूरत वृक्ष दिखाई दिया, जिसका तना सफेद एवं चिकना था, बड़े बड़े पत्ते सुन्दर दिख रहे थे। इस पर लगे फल शायद गर्मी के मौसम में फूट चुके थे, उसका खोल चार भागों में बंट कर सुन्दर फूल की तरह दिखाई दे रहा था। मैंने पहले कभी देखा नहीं था इस प्रजाति का वृक्ष। इसकी हमने फोटो ली, मकड़ियों के जालों से बचते हुए हम रास्ता भटक कर दूसरी जगह पर पहुच गए, यहाँ हमारे और सड़क के बीच  नाला होने के कारण पार करना मुश्किल था पर नामुमकिन नहीं। हमने उचित जगह की तलाश आकर ध्यान से नाला पार किया। अगला पड़ाव था सिरपुर का पर्यटन सूचना केंद्र .................
   

शनिवार, 3 नवंबर 2012

नागार्जुन एवं राजमहल ......Sirpur Chhattisgarh......... ललित शर्मा

राजमहल का दृश्य 
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सिरपुर में उत्खनित सभी पुरा धरोहरों को एक गलियारा बना कर जोड़ने का कार्य प्रगति पर है। इसके बाद कहीं से भी रास्ता पकड़ लीजिये, आप सिरपुर की धरोहरों का दर्शन किसी से रास्ता बिना पूछे कर सकते हैं। सिरपुर में आज हमारा अंतिम दिन था, दोपहर तक हमें यहाँ से रवानगी डालनी थी। इसलिए सुबह ही तैयार होकर राजमहल परिसर के अवलोकनार्थ चल पड़े। जब सिरपुर दक्षिण कोसल के पांडूवंशियों की राजधानी थी तो राजप्रसाद भी होना अत्यावश्यक है तभी राजधानी होने का दावा पुख्ता होता है। महानदी के तट पर पूर्वाभिमुख राजप्रसाद के अवशेष प्राप्त हुए हैं। अरुण कुमार शर्मा के निर्देशन में 2000-2001 में यह विशाल परिसर प्राप्त हुआ। पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर उन्होंने इसे राजप्रसाद घोषित किया।

राजसभा में राजीव एवं प्रभात सिंह 
यह राजप्रसाद सिरपुर के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के समीप है। जब हम यहाँ पहुचे तो इसके सामने हेलीपेड बना हुआ दिखाईदिया। इससे जाहिर होता है कि  आगमन से पूर्व किसी विशिष्ट विभूति का आगमन हो चुका है। एक तरफ जहाँ वर्तमान सिरपुर गाँव को विस्थापित करने की चर्चा चल रही है दूसरी तरफ शासन नवीन अस्पताल का निर्माण  कराया जा रहा है। राजप्रसाद की दीवारों को देखने से लगता है कि यह ईमारत बहुमंजिला रही होगी। पक्की ईंटो से निर्मित राज प्रसाद का प्रथम कक्ष प्रहरियों के लिए है, इसके पश्चात् स्वागत कक्ष, राजसभा, इसके चरों और गलियारा है, राजसभा में प्रवेश के लिए उत्तर की तरफ भी एक द्वार बना हुआ है। राज सभा में राजा का विश्राम कक्ष, सहयोगी कक्ष आस पास बने है। सभा गृह दो भागों में विभक्त है, पहले भाग में राजा के समीप मंत्री, महामंत्री एवं विशिष्ट सभासद स्थान पाते होंगे। उसके पश्चात् अन्य सभासदों के बैठने का स्थान है।

नागार्जुन निवास एवं स्तूप 
राजसभा के प्रथम खंड में लगभग 20 प्रस्तर स्तम्भ के अवशेष दिखाई देते हैं। राजसभा के गलियारे के बाद, मुख्य महिषी, पट्ट महिषी, अन्य परिचारिकाओं के कक्ष हैं, उत्तर दिशा में पाक शाला के अवशेष दिखाई देते  हैं. वास्तु  के अनुसार उत्तर- पश्चिम में पाकशाला होने का अनुमान जंचा नहीं। पाकशाला अवश्य ही आग्नेय कोण में होनी चाहिए। हो सकता है अगले किसी प्रयास में प्राप्त हो जाये। वर्तमान स्थिति को देखते हुए अनुमान होता है कि राजप्रसाद का क्षेत्र विस्तृत रहा होगा। पश्चिम का हिस्सा महानदी के चौड़े हुए पाट की भेंट चढ़ गया है। जब राजप्रसाद में राजा का निवास होगा तब महानदी के तट पर इस महल की रौनक देखते ही बनती होगी। महानदी से आते हुए पवन के ठण्डे झकोरे महल को शीतल रखते होंगे। 

राजमहल सिरपुर 
राजमहल से चल कर थोड़ी दूर पर स्थित नागार्जुन के निवास स्थल पर पहुंच गए। कहते हैं कि प्रसिद्द रसायनज्ञ नागार्जुन  सिरपुर आकर रहे थे। इस परिसर  में तीन निवास स्थान दिखाई देते हैं। प्रमुख निवास के सामने स्तूप के अवशेष प्राप्त हुए हैं। स्तूप का शीर्ष इस संरचना से ही उत्खनन में प्राप्त हुआ है। नागार्जुन का सिरपुर आना बड़ी बात है। नागार्जुन सिरपुर आकर रहे होगें तो अवश्य ही यह बौद्ध धर्मावलम्बियों के निवास का प्रमुख केंद्र था। सिरपुर में प्राप्त विहारों से नागार्जुन के सिरपुर आगमन को प्रमाणिक बल मिलता है। भारत में बौद्ध धर्म से सम्बंधित पुरातात्विक स्थलों पर मनौती स्तूप प्राप्त होते रहे हैं। यह स्तूप प्रस्तर एवं धातुओं के होते हैं, श्रद्धालु अपनी श्रद्धानुसार प्रस्तर या धातु के मनौती स्तूपों का निर्माण करते थे।

मनौती स्तूप 
ऐसा ही एक प्रस्तर मनौती स्तूप बाजार क्षेत्र के श्रेष्ठी के निवास (इसे धातु मूर्ति शिल्प कार्यशाला नाम दिया गया है) से प्राप्त हुआ है तथा  जहाँ से प्राप्त हुआ इसे उसी स्थान पर रख भी दिया है। मनौती मानने की परम्परा प्राचीन काल से लेकर आज तक चली आ रही है। लोग इष्ट स्थानों पर मनौती मानते थे और मनवांछित फल प्राप्त होने पर मनौती मने गए स्थान पर उन वस्तुओं का अर्पण  थे। जैसे कुछ स्थानों पर वर्त्तमान में बकरा और भैंसा मनौती के रूप में कटे जाते हैं. उसी प्रकार बौद्ध धर्मावलम्बी मनौती पूर्ण होने पर मनौती स्तूपों का निर्माण कर स्थापित करवाते थे। जो उनके नाम से जाना जाता था। यहाँ से हम अब एक नयी पुरातात्विक साईट के सर्वेक्षण के लिए चल पड़े।   ........... जारी है ........ आगे पढ़ें .........

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

तीवरदेव बौद्ध महाविहार ......Sirpur Chhattisgarh........... ललित शर्मा

भूमि स्पर्श मुद्रा में बुद्ध 
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तीवरदेव महाविहार सिरपुर का प्रमुख पुरातात्विक स्थल है, दक्षिण कोसल में उत्खनन से प्राप्त अब तक का बड़ा विहार है, इसका उत्खनन 2002-2003 में अरुण कुमार शर्मा ने किया था। उत्खनन के दौरान उपलब्ध प्रमाणों एवं उपलब्ध अभिलेखों से इस महाविहार को महाशिवगुप्त तीवरदेव के शासनकाल में छठी शताब्दी के मध्य में निर्मित माना जाता है। बौद्ध विहार में प्रवेश करने पर बहुत ही सुन्दर अलंकृत प्रवेश द्वार दिखाई देता है। प्रवेशद्वार का शिल्प अद्भुत है, शिल्पकार ने विभिन्न विषयों पर अपनी छेनी चलाई है। मगर और बन्दर की  पंचतंत्र की कथा के साथ बिल से निकल कर सांप का मेंढक को पकड़ना, पुष्प पर बैठी हुई मधुमक्खी का अंकन, चाक पर बर्तन बनता हुआ कुम्हार, प्रेमासक्त चुम्बन आलिंगनरत युगल का अंकन आकर्षक है।

तीवरदेव विहार की प्रतिमा 
प्रवेशद्वार की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी ही कम है। शिल्पांकन महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि यहाँ पशु मैथुन का दृश्य है, इसमें हाथियों को मैथुन मुद्रा में दिखाया गया है। विशिष्ट इसलिए भी है की बौद्ध विहारों में इस तरह के शिल्पांकन का अभाव रहता है। प्रणयरत  युगल मूर्तियाँ विशेष आकर्षण का केंद्र है। भीतर प्रवेश करने पर 16 अलंकृत स्तम्भ दिखाई देते हैं, इन पर ध्यान मुद्रा में बुद्ध, सिंह, मोर, चक्र आदि का मनोहर शिल्पांकन है। गर्भ गृह के पश्चिम में भूमि स्पर्श मुद्रा में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। इसके अतिरिक्त रत्न संभव तथा पद्मपाणि की प्रतिमाएं भी प्राप्त हुयी हैं। जल निकासी के लिए भूमिगत नालियों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। इससे  होता है कि जल निकासी की व्यवस्था वास्तुकारों ने उत्तम बनायीं थी।

विहार की ईंटों की दीवारें 
इस विहार के उत्त्खन्न के दौरान मेरा सिरपुर दौरा हुआ था। तब नहीं लगता था कि यह इतना विशाल होगा। यह भी आभास नहीं था कि कभी मुझे इस पर लिखना भी होगा। प्रस्तर के स्तम्भ देख रेख के आभाव में खंडित हो रहे है। बंदरों की उछल कूद के कारण एक स्तम्भ तो दो भागों में बंटा दिखाई दिया। भारतीय पुरातत्व संरक्षण के पास बड़ा अमला है, उन्हें इसका रासायनिक संरक्षण करना चाहिए। यह विहार 902 वर्ग मीटर के परिक्षेत्र में बना हुआ है। इस स्थान पर अन्य विहार के साथ बौद्ध भिक्षुणी विहार भी स्थित है। कहते हैं कि जब वज्रयान संप्रदाय का उद्भव हुआ तब से भिक्षुणियों को भी पृथक विहार बना कर विहार संकुल में उनके रहने की व्यवस्था की गयी। उत्खनन में वज्रयान का प्रतीक धातु का वज्र भी प्राप्त हुआ है।

विहार का विस्तार 
अरुण कुमार शर्मा कहते हैं कि इस विहार के कक्षों को कालांतर में पूजाकक्षों में परिवर्तित कर दिया गया लगता है. इस परिवर्तन के बाद इस विहार का दक्षिण दिशा में विस्तार किया गया है। अनेक नवीन कक्षों का निर्माण किया गया, पूर्व की अपेक्षा एक बड़े मंडप का भी निर्माण किया गया तभा चारों ओर 36 मी लम्बा और 1.5 मी चौड़ा गलियारा है। इस विहार में सीढियाँ भी मिली हैं, जिससे उत्खननकर्ता अनुमान लगते हैं की यह विहार दो मंजिला रहा होगा। मेरा अनुमान है की यह विहार बहुमंजिला भी हो सकता है, क्योंकि व्हेनसांग ने 10,000 बौद्ध भिक्षुओं के सिरपुर में निवास करने का जिक्र किया है। उनके रहने की व्यवस्था करने के लिए इस विहार को अन्य विहारों की अपेक्षा विशाल और प्रमुख बनाया गया होगा।

मुख्य द्वार पर कुम्हार की मूर्ति 
यह विहार कसडोल जाने वाले मार्ग पर सिरपुर चौराहे से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजीव  और मैंने यहाँ चित्र लिए। मेरे कानों में बौद्ध धर्म के मन्त्रों की गूंज हो रही थी। "ॐ मणि पद्मे हूँ" के बीज मंत्र का जाप हो रहा है, जाप की ध्वनि से सारा वातावरण गुंजायमान है। कषाय वस्त्रों में बालक, युवा बौद्ध भिक्षु बुद्ध सरीखे दिखाई दे रहे हैं। शुद्धो असि, बुद्धो असि, निरंजनो असि, के दर्शन यही हो रहे हैं। तीवरदेव महाविहार के मुख्यद्वार से निकलते हुए सोचा रहा था कि अनीश्वरवादी बुद्ध को कितनी सफाई से हिन्दूधर्म में अवतार घोषित कर समाविष्ट कर लिया गया। परन्तु ये तो तय है कि बौद्ध धर्म की स्थापना के पूर्व बुद्ध हिन्दू ही थे। भारत में यह ऐसा अवतार हुआ जिसके सिद्धांतों को देश से अधिक विदेशों में माना और समझा गया। तीवरदेव विहार से हम नागार्जुन के विहार और राजमहल के अवलोकनार्थ चल पड़े। ......... जारी है ........ आगे पढ़ें ........