बुधवार, 3 अगस्त 2016

ओरछा के राम राजा सरकार

ट्रेन एक घंटा विलंब से झांसी पहुंची। मुकेश जी रास्ते में थे, तब तक हमने स्टेशन के बाहर लगी त्रिमूतियों (राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, वृंदावन लाल वर्मा) के साथ एक सेल्फ़ी ली। तब तक मुकेश जी पहुंच गए। ओरछा में रेस्ट हाऊस बुक था, परन्तु इसका एसी खराब था। एसी का पंखा हवा फ़ेंकता था पर ठंडा नहीं कर रहा था। इस भीषण गर्मी से निजात पाने के लिए हमने खाट बाहर ही डाल ली। हल्की सी बरसात से मौसम सुहाना हो गया था। एक भरपूर नींद ली।
झांसी रेल्वे स्टेशन पर मैथली शरण गुप्त, वृंदावन लाल वर्मा एवं आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रतिमाएँ
आज 26 मई 2015 को ओरछा की सुबह बदलियाना थी, उठकर स्नानादि से निवृत होने के बाद टहलने लगा तो डाक बंगले के इर्द गिर्द चिडियों ने आकर्षित किया। कैमरा निकाल कर उनके पीछे फ़ोटो के लिए चल पड़ा। कुछ देर चिड़ियों की फ़ोटोग्राफ़ी तब तक पटवारी महोदय भी पहुंच गए। तहसीलदार साहब ने पटवारी की ड्यूटी लगाई थी, हमारे राम राजा सरकारे के दर्शनों के लिए। तब तक मुकेश जी भी पहुंच गए। हम राम राजा दरबार पहुंचे तो धूप निकल आई थी और आरती चल रही थी। आरती के बाद हमने दर्शन किए तथा स्थल का एक चक्कर लगाया। यहाँ मंदिर में कुछ प्राचीन प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जो अन्य किसी स्थान से लाई गई हैं। अब वे विस्मृत हो गई, राम राजा दरबार में फ़ोटो खींचने की मनाही है। 
ओरछा डाक बंगले की सुबह मुकेश पान्डेय जी के साथ
राम राजा की कहानी भी रोचक है। कहा जाता है कि संवत 1600 में तत्कालीन बुंदेला शासक महाराजा मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुअंरि गणेश राजा राम को अयोध्या से ओरछा लाई थीं।  एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी तो राम की भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया। गुस्से में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। 
ओरछा नगर का प्रवेश द्वार
इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना और दृढ़ होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक राजा राम के दर्शन नहीं हुए। वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें राजा राम के दर्शन हुए। रानी ने उनसे ओरछा चलने का आग्रह किया। उस समय मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने शर्त रखी थी कि वे ओरछा तभी जाएंगे, जब इलाके में उन्हीं की सत्ता रहे और राजशाही पूरी तरह से खत्म हो जाए। तब महाराजा शाह ने ओरछा में ‘रामराज' की स्थापना की थी, जो आज भी कायम है।
राम राजा दरबार में मुकेश पान्डेय चंदन, ललित शर्मा एवं पटवारी जी
कहते हैं कि राजा ने चतुर्भुज मंदिर बनवाया, इसमें भगवान राम की स्थापना होनी थी। परन्तु स्थापना के वक्त प्रतिमा अपने स्थान से हिली नहीं। इसे चमत्कार मान कर महल के उस हिस्से को मंदिर का रुप दे दिया गया और यह राम राजा मंदिर कहलाने लगा। भगवान राम को यहाँ का राजा माना जाता है, मूर्ति का चेहरा मंदिर की ओर न होकर महल की ओर है। रानी के दिए वचनों के कारण यहाँ राम राजा की सत्ता स्थापित हुई जो आज पर्यंत चल रही है। मान्यता है कि यहां राजा राम हर रोज अयोध्या से अदृश्य रूप में आते हैं। 

शीश महल रेस्टोरेंट पर्यटन विभाग
यहाँ राम राजा को सूर्योदय के पूर्व एवं सूर्यास्त के बाद सलामी दी जाती है, इस सलामी के लिए मध्यप्रदेश पुलिस के जवान तैनात हैं। क्योंकि देश में राजा राम चंद्र का यह एक ऐसा मंदिर है जहां राम की पूजा भगवान के तौर पर नहीं बल्कि राजा के रूप में की जाती है। चुंकि यहां के राजा राम हैं इसलिए मंदिर खुलने और बंद होने का समय भी तय है। सुबह में मंदिर आठ बजे से साढ़े दस बजे तक आम लोगों के दर्शन के लिए खुलता है। इसके बाद शाम को मंदिर आठ बजे दुबारा खुलता है। रात को साढ़े दस बजे राजा शयन के लिए चले जाते हैं। मंदिर में प्रातःकालीन और सांयकालीन आरती होती है जिसे आप देख सकते हैं। देश में अयोध्या के कनक मंदिर के बाद ये राम का दूसरा भव्य मंदिर है। 
रेस्टोरेंट का डायनिंग हॉल
राम राजा के दर्शनोपरांत हम शीश महल की  ओर पहुंचे, यह मध्यप्रदेश पर्यटन के अधीन है। यहाँ रेस्टोरेंट के साथ ठहने के लिए किंग एवं क्वीन सुईट भी हैं। हमने यहाँ पराठे एवं दही का नाश्ता किया। इसके बाद किंग एवं क्विन सुईट का नजारा देखा। इन दोनों सुईट के बीच एक आँगन हैं। साज सज्जा भी महल के इंटिरियर से मिलती जुलती है। परन्तु सुइट के हालात देख कर तो लगता नहीं कि कोई हजारों रुपया खर्च यहाँ रात गुजारने आता होगा। सरकारी काम सरकारी जैसा ही होता है। काम न धाम पर महीनें तनखा पक्की है तो कौन ध्यान देता है, रख रखाव पर। यहाँ से हम जहाँगीर महल देखने के लिए पहुचें। जारी है आगे पढें…

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