बुधवार, 19 अप्रैल 2017

नवीन मित्रों की वैवाहिक वर्षगांठ पार्टी : सुंदरबन यात्रा

दिन भर की सुंदरबन सफ़ारी के बाद हमारा स्टीमर जेट्टी से आ लगा, आज विशेष दिन भी था। कोलकाता से आए हमारे नए साथी नबारुन दत्ता एवं श्री दत्ता की वैवाहिक वर्षगांठ भी थी, इन्होंने हम सभी को इस खुशी के अवसर पर सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया था कुछ स्नेक्स एवं बेवरीज का इंतजाम भी अपनी तरफ़ से शक्ति के अनुसार किया था। हमारा भी फ़र्ज बनता था कि हम किसी की खुशी में सम्मिलित हों।
नबारून और श्री टाइटैनिक पोज 
रिसोर्ट में पहुंचकर पार्टी सजाई गई, थ्री चीयर्स के साथ शुभकामनाएं की बौछार सभी मित्रों ने दोनों पर की। कुछ गाने गए और कुछ नृत्य का मजा लिया गया। इस तरह पार्टी में रौकन आ गई। इसे ही कहते है कि मनुष्य किसी भी स्थान पर किसी भी परिस्थिति में रहे वह आनन्द का अवसर ढूंढ ही लेता है। हमारे प्रवीण सिंह ने इस अवसर को खूब इनज्वाय किया। इस तरह सभी ने मिलकर इस जोड़े की सालगिरह को अविस्मरणीय बना दिया।
झारखाली  जेट्टी 
अगले दिन हमें लौटना था इसलिए रात्रि विश्राम हुआ,  सुबह उठकर आस पास का जायजा लिया गया। हमारी गारी कोलकाता से दोपहर तक आनी थी, इसलिए दोपहर के भोजन के उपरांत हम कोलकाता के लिए चल पड़े। अब हमें पुन; चार घन्टे का सफ़र तय करके गोड़खाली एवं कैनिंग होते हुए कोलकाता पहुंचना था। वहाँ हमारे ग्रुप घुमक्कड़ी दिल से के सुपर एडमिन किशन बाहेती जी प्रतीक्षा कर रहे थे।
झारखाली  की सुबह 
टैक्सी वाले हमको हावड़ा स्टेशन छोड़ दिया, हमारी ट्रेन रात को दस बजे थी, तब तक कोलकाता घूमने के लिए हमारे पास समय था। लेकिन सबसे बड़ी समस्या सामान रखकर खाली हाथ घूमने की थी। अनिल रावत किसी की शादी में सम्मिलित होने चले गए, मैं, राजु दास, ज्ञानेन्द्र पाण्डेय आदि किसन जी के साथ उबेर लेकर कोलकाता का चक्कर लगाने निकल पड़े। रास्ते में तय हुआ कि इतना अधिक समय नहीं है कि हम कुछ देख सकें।

स्ट्रीट फ़ूड का मजा किशन जी, राजू, ज्ञानेंद्र पाण्डेय 
मैने कहा कि आज कोलकाता के स्ट्रीट फ़ुड का आनंद लिया जाए, बस फ़िर क्या था, किशन जी हमको पार्क स्ट्रीट ले गए और वहाँ हमने झालमुड़ी से स्वाद लेना प्रारंभ किया, फ़िर पनीर रोल खाते हुए एक स्थान पर पकोड़ी और चीला खाने पहुंचे। यहाँ पहुंचने पर ज्ञानेन्द्र भाई ने अपना बैग ठेले वाले पास रख दिया और हम पकोड़ी खाने लगे। तभी मेरे घूमने से बैग उसकी गरम तेल की कहाड़ी से भिड़ गया और कड़ाही उलटने से सारा गरम तेल बैग पर गिर गया।
लस्सी सेवन - प्यार बांटते चलो 
इस दुर्घटना से मेरा दिमागी संतुलन क्षणिक बिगड़ गया, अगर वह गरम तेल किसी व्यक्ति पर गिर जाता तो बहुत बड़ी दुर्घटना घट सकती थी। बैग पर तेल गिरने से खाने का मन भी नहीं रहा। पहले बैग का तेल झाड़ा गया और एक बैग का निकाल कर उसे फ़ेका गया। यहाँ से चलकर लस्सी चाय पी और अंतिम में मटका कुल्फ़ी खाकर हम स्टेशन लौट आए। गाड़ी प्लेटफ़ार्म पर लग चुकी थी, जब गाड़ी चलने को हुई तो अनिल रावत भी दौड़ कर पहुंचे… गाड़ी चल पड़ी और हमारी सुंदरबन सफ़ारी सम्पन्न हो चुकी थी………

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

विशाल जलराशि के बीच स्टीमर में सफ़ारी : सुंदरबन यात्रा

स्टीमर में सवार होकर सुंदरबन के डेल्टा की अथाह जलराशि के बीच हम आगे बढ रहे थे, कैमरे अभी भी सजग ही थे, न जाने कब कहाँ और क्या मिल जाए, इसलिए फ़ोटोग्राफ़र को हमेशा सजग मोड में रहना पड़ता है सफ़ारी के दौरान। कभी तो ऐसा होता है कि जैसे ही पैकअप किया और वह जानवर सामने आ जाता है जिसके लिए हमने सफ़ारी की थी और कैमरा चालु करते तक वह आँखों से ओझल हो जाता है।
हमारे सुपर फोटोग्राफर प्राण चड्डा जी 
हम सुंदरबन बाघ देखने आए थे, परन्तु बाघ दिख नहीं था तो प्राकृतिक दृश्यों, चिड़ियों की फ़ोटोग्राफ़ी हो रही थी। संजेखाली वाच टावर से हम सुधन्याखाली वाच टावर पहुंचे। जैसे ही हम पहुँचे तो लगभग 200 फुट की दूरी पर काली चट्टान के जैसे कुछ दिख रहा था। मैंने तीन चित्र लिए। तीसरा चित्र लेने के बाद जब यह काली चट्टान उड़कर वृक्ष पर बैठ गयी तब समझ आया कि यह पक्षी है। 
Changeable hawk Eagle
यह काफ़ी Changeable hawk Eagle बड़ा पक्षी था, इसकी ऊंचाई लगभग ढाई फुट होगी और सामान्य ईगल से काफी बड़ा था। यह मान सकते हैं कि ईमू से थोड़ा छोटा होगा। फोटो लेते वक्त यह तालाब में स्नान कर रहा था। यह सद्यस्नात का चित्र है। खुशी कि बात यह है कि मेरे कैमरे में दुर्लभ पक्षी पकड़ में आया।

वन देवी 
इस द्वीप के निवासी बाघ एवं जंगली जानवरों से बचने के लिए वन देवी की पूजा करते हैं और फ़िर समुद्र में उतरते हैं। जिससे मन में कोई दुर्घटना घटने की आशंका नहीं रहती। इस वाच टावर में सुंदरबन में होने वाले कई तरह के पेड़ पौधों की प्रजातियों को प्रदर्शित किया गया है।
स्टीमर टाइगर 
यहाँ लोहे का बना टायगर नामक ब्रिटिशकालीन छोटा जहाज भी ग्राऊंड किया हुआ है। जो अपनी सेवा से निवृत्त होकर जंग खाते पड़ा है। एक अरसे के बाद जंग एवं खारा पानी इसे खत्म कर देगा। यहाँ कोई जानवर देखने नहीं मिला।
जंगली सूअर 
यहाँ से अगले टावर की ओर हम बढ़ गए, रास्ते में खाना खाया, जिसमें दाल भात, चोखा, चिंगरी माछ इत्यादि का सम्मिलित था। आगे बढते हुए एक स्थान पर जंगली सुअर दिखाई दिए, थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर चीतल भी। फ़िर आगे चलकर एक स्थान पर दलदल में बाघ के पद चिन्ह दिखे। जिससे लग रहा था कि बाघ जलराशि को लांघकर दूसरे जंगल की ओर गया है। चलो हम इतने से ही संतुष्ट हो गए कि बाघ नहीं तो बाघ के पद चिन्ह तो दिखे। 
वाच टावर 
आगे चलकर हमारा स्टीमर अंतिम पड़ाव दोबांकी कैम्प वाच टावर पहुंचा। यहाँ वाच टावर पर पहुंचने पर एक बड़ी गोह वृक्ष के नीचे धूप सेकते हुए दिखाई दी। सुंदरबन में गोह बड़ी संख्या हैं, हमें यह कई स्थानों पर दिखाई दी। ये गोह काफ़ी बड़ी थी। पूंछ से सिर तक की लम्बाई सात फ़ुट से अधिक रही होगी। इनका शरीर छिपकली के जैसा होता है, परन्तु उससे काफ़ी बड़ा होता है।
गोह 
गोह छिपकिलियों की निकट संबंधी हैं, जो अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अरब और एशिया आदि देशों में फैले हुए हैं। ये छोटे बड़े सभी तरह के होेती है, जिनमें से कुछ की लंबाई तो 10 फुट तक पहुँच जाती है। रंग प्राय: भूरा रहता है, शरीर छोटे छोटे शल्कों से भरा रहता है। जबान साँप की तरह दुफंकी, पंजे मजबूत, दुम चपटी और शरीर गोल रहता है। इनमें कुछ अपना अधिक समय पानी में बिताते हैं और कुछ खुश्की पर, लेकिन वैसे सभी गोह खुश्की, पानी और पेड़ों पर रह लेते हैं। ये सब मांसाहारी जीव हैं, जो मांस मछलियों के अलावा कीड़े मकोड़े और अंडे खाते है।
गोह 
गोह पानी में रहती है। तराकी में दक्ष है यह, साथ में तेज धावक व वृक्ष पर चढने में माहिर होती है। पुराने समय में जो काम हाथी-घोडे नहीं कर पाते थे, उसे गोह आसानी से कर देती थी। इनकी कमर में रसा बाँधकर दीवार पर फेंक दिया जाता था और जब ये अपने पंजों से जमकर दीवार पकड लेती थी, तब सैनिक रस्सी के सहारे ऊपर चढ जाते थे। हमने गोह की फ़ोटो ली। तब तक सांझ ढलने लगी थी एवं जानवरों के जलस्रोतों की ओर लौटने का समय हो गया था।
चीतल हिरण 
वाच टावर से दिखने वाले टैंक पर एक नर चीतल का आगमन हुआ, सभी अपने कैमरे से फ़ोटो लेने लगे। मुझे पता था कि नर चीतल हालात का जायजा लेने आया है, सब कुछ सही मिलने पर दल के बाकी सदस्य भी पहुंचने वाले हैं। थोड़ी देर बाद मादा चीतल एवं उसके शावक भी पानी पीने के लिए पहुंचे, हमने जी भर के फ़ोटो खींचे। इसके बाद वापस स्टीमर में आ गए। सांझ हो रही थी सूरज ढल रहा था। हमारा स्टीमर वापसी की राह पर था।
लौटते हुए राजू दास मानिकपुरी 
एक स्थान पर खारे पानी का मगरमच्छ विश्राम करते दिखाई दिया। स्टीमर उसकी तरफ़ मोड़ कर ले जाया गया जिससे हम उसकी फ़ोटो ले सकें।  कुछ जंगली सुअर भी दलदल में विचरण करते दिखाई दिए। परपल हेरोन, ग्रेट इगरेट इत्यादि पक्षियों के साथ तोते भी उड़ान भर रहे थे। मछली मारने वाली, शहद बटोरने वाली नौकाएं भी लौट रही थी। सुंदरबन के जंगलों से स्थानीय निवासी प्रतिवर्ष लगभग 10 हजार टन शहद निकालते हैं। जब सूरज अस्ताचल की ओर जाता है, सारा जगत अपना काम खत्म करके विश्राम के मुड में होता है और हम भी अपनी जेट्टी की तरफ़ जा रहे थे। जारी है ..... आगे पढ़ें 

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

टीम चायना गेट मिशन सुंदरबन पर : सुंदरबन यात्रा

सुबह मेरे उठने से पहले ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, प्रवीण सिंह, प्राण चड्डा जी रिसोर्ट के आस पास फ़ोटो खींचने चले गए। गाँव वालों ने बताया कि चार दिन पहले बाघ उनके गाँव तक आ गया था। कभी कभी बाघ बफ़र जोन में भी आ जाते हैं इसलिए गांव से दूर सावधानी के साथ जाना चाहिए। वैसे दूर जाने के मनाही भी है।  
तीन पहिया जुगाड़ में जेट्टी की ओर 
सुबह हम तैयार होकर सफ़ारी के लिए तीनगोड़िया फ़टफ़टिया में बैठकर जेट्टी की ओर चल पड़े। जेट्टी पर हमारा स्टीमर प्रतीक्षा कर रहा था। यह दो मंजिला बड़ा स्टीमर था, जिसमें शौचालय के साथ भोजन बनाने की सुविधा भी थी। सोमनाथ दा ने हमारा भोजन जेट्टी पर चढवा दिया साथ ही आरो वाटर की बोतलें भी। इस गाँव का पानी खारा होने के कारण सभी लोग आरो वाटर का प्रयोग करते हैं।
टीम चायना गेट :)
हर हर महादेव के उद्घोष के साथ हमारी सुंदरबन यात्रा प्रारंभ हो गई। हमारे साथ नबारुन दत्ता एवं उनकी पत्नी भी इस सफ़ारी में शामिल हो गए। यहाँ पर हम विद्याधरी नदी से समुद्र की ओर बढ रहे थे। विद्याधरी नदी का पाट बहुत चौड़ा है, इसमें पहुंचने के बाद यही समुद्र सा अहसास करवाती है। 
टीम चायना गेट मिशन पर 
सभी ने बोट में अपना स्थान ग्रहण कर लिया और कैमरा लेकर मुस्तैद हो गए, अभी तो सफ़र शुरु ही हुआ था। परन्तु लग रहा था कि पानी में बहुत दूर आ गए और अभी ही हम लोगों को बाघ दिख जाएगा। जबकि बाघ का कोसों दूर कोई पता नहीं था। प्राण चड्डा जी ने गाईड को कहा कि अगर वो बाघ दिखाएगा तो उसे पाँच सौ रुपए देंगे।
कमांडर ऑफ़ टीम चायना गेट प्राण चड्डा जी 
अचानक प्राण चड्डा जी का मन बोट ड्राइव करने का हो गया और काकपिट से पायलेट को बाहर निकाल खुद ही बोट उड़ाने लगे। खैर हम तो अनुभवी हैं इसलिए कोई खास अंतर नहीं पड़ा परन्तु बोट का असली पायलेट सदमे में आ गया क्या पता फ्लाइट के दौरान पायलेट को बाहर निकाल प्लेन उड़ाने लग जाएं तो सवारियों का क्या होगा? भले ही हमें सफ़ारी बाघ दिखे या न दिखे, परन्तु प्राण चड्डा जी ने बोट चला कर बाघ देखने के इतना रोमांचित तो जरुर कर दिया। जब सफ़र में साथ जिन्दादिल हों तो उसका मजा ही कुछ और है। 
समंदर में स्टीमर 
हम देखते हैं कि डेल्टा क्षेत्र में कई द्वीपों को मिलाकर सुंदरबन का निर्माण प्रकृति ने किया है। मैनग्रोव के वृक्षों से भरे ये द्वीप बंगाल टाइगर की आदर्श शरणस्थली बने हुए हैं। पानी में तैरकर शिकार करने वाले ये बाघ आदमखोर कहे जाते हैं एवं मछली पकड़ने वाली नौकाओं पर हमला करने में भी नहीं चूकते। बड़ा शिकार न मिलने पर ये बाघ मत्स्य आखेटकर भक्षण करने में भी सिद्ध हैं। 
मैंग्रोव जंगल 
सबसे पहले हम सजनेखाली वाच टावर में उतरे। यहाँ तारघेरा लगाकर कुछ मगरमच्छ एवं गोहों (मानिटर लिजार्ड) को रखा गया है। इसके साथ ही एक छोटी सी प्रदर्शनी सुंदरबन के विषय में लगाई गई है। जिससे आने वाले को सुंदरबन की सम्पूर्ण जानकारी मिल सके। 
सजने खली वाच टॉवर 
बंगाल हैडीक्राफ़्ट का छोटा सा विक्रय केन्द्र भी है। मुझे यहां बहुत बड़ी गोह दिखाई दी। इतनी बड़ी गोह मैने नहीं देखी भी। हम लोगों ने कुछ फ़ोटो लिए और फ़िर लौटने का समय हो गया। जेट्टी पर हमारा स्टीमर लग चुका था। स्टीमर में सवार होकर हम आगे बढ गए।
मॉनिटर लिजार्ड - गोह 
सुंदरबन सफ़ारी के दौरान दूर सुनसान किनारे पर दलदल में एक धब्बा सा दिखाई दिया। पहचान में नहीं आ रहा था कि वह मनुष्य है या जानवर। मैने कैमरा जूम करके एक चित्र लिया तब तक बोट आगे बढ गयी और वह धब्बा आँखों से ओझल हो गया। खींची गई फ़ोटो देखने पर पता चला कि वह धब्बा सा एक महिला है। जो उकड़ू बैठकर केकड़े फ़ंसा रही है। 
केकड़े पकड़ती महिला मौत की आहट से बेखबर 
जिस वन में आदमखोर बाघ रहते हैं और वे कब हमला कर दें इसका पता नहीं वहां जान पर खेलकर केकेड़े पकड़ना बहादुरी का नहीं विवशता का कार्य है। इस अंचल के निवासियों का मुख्य व्यवसाय मछली, झींगे, केकड़े आदि पकड़ कर एवं शहद निकालकर जीवन निर्वहन है। आसपास के गाँव के मछुवारे ज्वार भाटे एवं मौसम का ध्यान रखते हुए अपनी नाव लेकर मछली पकड़ने निकल जाते हैं एवं बाघ का शिकार बनते हैं।
 यह भी एक अंदाज है कातिलाना 
गत वर्ष ही कैनिंग के समीप दत्ता झील के किनारे केकड़े पकड़ रहे एक मांझी पर बाघ हमला करके उसे खींच कर जंगल में गायब हो गया। उसके मांझी के साथियों ने बाघ का पीछा किया, लेकिन वह मांझी को अपने जबड़ों में दबाए जंगल में कहीं गायब हो गया एवं उसका शव तक बरामद नहीं हुआ। आखिर पेट की भूख प्राणों पर भारी पड़ ही जाती है परन्तु यह विवशता है कि इनके पास इसके अतिरिक्त जीवन निर्वाह करने के लिए अन्य कोई कार्य भी नहीं है। 
बंगाल का बाघ 
वैज्ञानिकों का मानना है कि पानी में खारे पानी की अधिकता के कारण मैन्ग्रोव की सुंदरी प्रजाति नष्ट होते जा रही है, जिसके कारण हिरणों की संख्या भी कम होने की आशंका जताई जा रही है। जहाँ हिरण कम होंगे तो वहां बाघों के लिए भोजन की समस्या प्रारंभ हो जाएगा और बाघों पर वैसे ही शिकारियों का खतरा मंडराता रहा है.
टाइग्रेस इन एक्शन : श्री दत्ता 
अब यह नई समस्या भी जन्म लेने लगी हैं। मानव एवं बाघ दोनों का बसेरा है सुंदरबन में। दोनों को एक दूसरे के अस्तित्व स्वीकार कर अपना निर्वहन करना है। फ़िर व्यक्ति कितनी भी चतुराई कर ले, जंगली जानवर का शिकार बन ही जाता है। न मानव जंगल छोड़ सकता न बाघ।  जारी है, आगे  पढ़ें  

रविवार, 16 अप्रैल 2017

छत्तीसगढ़ रॉयल टायगर सुंदरबन में : सुंदरबन यात्रा

सुंदरबन एक मैन्ग्रोव का जंगल है, जहाँ के रॉयल बंगाल टायगर प्रसिद्ध हैं। इसका चालिस प्रतिशत भाग हिन्दुस्तान में एवं साठ प्रतिशत भाग बंगलादेश में है। कई वर्षों से सुंदरबन जाने की प्रबल इच्छा थी। पर संयोग वर्ष 2017 के जनवरी के माह के अंतिम सप्ताह में बना।

सुंदरबन के यात्री प्रवीण सिंह, ललित शर्मा, राजुदास, ज्ञानेन्द्रा पाण्डेय, निखिलेश, दिगेश्वर एवं अनिल रावत
इस तरह हम लोगों की टीम सुंदरबन तैयार हो गई, बलौदाबाजार से निखिलेश त्रिवेदी, प्रवीण सिंह, दिनेश ठाकुर, बिलासपुर से प्राण चड्डा, रायपुर से ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, अनिल रावत एवं कवर्धा से राजुदास मानिकपुरी सुंदरबन जाने के लिए तैयार हुए। लिस्ट में कुछ नाम और भी थे परन्तु आकस्मिक कार्यों के कारण वे नहीं जा सके।

विद्यासागर सेतु हावड़ा की सुबह
छब्बीस जनवरी को हम लोग ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस से हावड़ा के लिए रवाना हुए। अगली सुबह हावड़ा में हमारे टूर आपरेटर तैयार सुमंत बसु सारी तैयारियों के साथ मौजूद थे। हम हावड़ा से सात बजे सुंदरबन के लिए चल पड़े। हमारा पहला पड़ाव कनिंग था। इसके बाद हम सुंदरबन के ग्राम झाड़खाली पहुंचे।

प्राण चड्डा जी सुन्दरबन में
यहाँ सोमनाथ दा के होम स्टे रिसोर्ट में हमारा ठहराव था। झाड़खाली वैसे तो छोटी जगह है, परन्तु यहाँ से सुंदरबन के लिए बोट मिलती हैं और जेट्टी भी है। यहाँ से सुंदरबन की सफ़ारी कराई जाती है। दोपहर एक बजे हम नहा धोकर तैयार हुए और भोजन के पश्चात आराम करके झाड़खाली के चिड़ियाघर देखने गए। 
ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, कुछ खरीदा जाए
झाड़खाली में एक चिड़ियाघर बनाया गया है, जिसमें दो रायल बंगला टायगर को रखा गया है। जाली में बंद टायगर की फ़ोटो खींचने में बड़ी तकलीफ़ होती है। दो जालियों के बीच फ़ोकस करके फ़ोटो लेना बहुत ही कठिन काम है। 
अनिल रावत एवं राजुदास मानिकपुरी
जू में बनाई गई नहर में कुछ मगरमच्छ भी छोड़े हुए हैं। हमने इन सबकी फ़ोटोग्राफ़ी की और फ़िर जेट्टी तक घूमने गए। जेट्टी पर कुछ फ़ोटो खींच कर लौट आए। इस दिन हमारे साथ कोलकाता से आया हुआ एक जोड़ा नबारुन दत्ता एवं श्रीदत्ता भी ठहरे हुए थे। दोनो स्वभाव से मिलनसार लगे। इन्होने हम लोगों से दोस्ती गांठ ली।
झाड़खाली जू का मगरमच्छ
रात को हमारे लिए बाऊल नृत्य गान का आयोजन किया गया था। हमने रात को बाऊल नृत्य गान का आनंद लिया। बाऊल नृत्यगान वैष्णव पंथी कृष्ण भक्ति पर आधारित है। धीमे साज पर एकतारा के साथ गाया जाता है तो ऐसा लगता है कि गायक एकदम डूब कर गा रहा है। 
रायल बंगाल टायगर पिंजरे में
सोमनाथ दा ने भोजन में सभी तरह की तैयारी कर रखी थी। जिसमें सामिष एवं निरामिष दोनो भोजन था। होम स्टे में एक फ़ायदा यह होता है कि घरेलू भोजन कराया जाता है, जिसमें नमक, मिर्च एवं तेल की मात्रा सही होती है। अधिक तेल और ग्रेवी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही हैं। 
तन्मयता से फ़ोटोग्राफ़ी दिनेश ठाकुर
सुंदरबन के आसपास के गाँव के कुछ लोग पर्यटन व्यवसाय से भी जुड़ गये हैं, जिससे कुछ आमदनी हो जाती है अन्यथा मांझी की नाव समुद्र के ज्वार भाटा का आंकलन कर सुरक्षित समय में खाना पानी लेकर मछली मारने निकल जाती है। इनकी नाव में खाना बनाने के लिए चूल्हा भी होता है। जाल डालने के बाद चूल्हे पर माछ भात तैयार कर लेते हैं और दो-चार दिन मछली मारने के लिए दूर तक निकल जाते हैं।
मांझी की नाव एव किनारा
इसे हैरिटेज साइट घोषित करने के कारण बफ़र जोन में भी पक्की छत का मकान बनाना वर्जित है। अधिकांश घरों में फ़ूस के छप्पर दिखाई देते हैं। बांस की खप्पचियों की दीवार बनाकर उसकी दोनो तरफ़ से मिट्टी की छबाई कर दी जाती है एवं फ़ूस की छत की ढलान अधिक होती है जिससे उसमें पानी नहीं ठहरता। मार्च के अंतिम सप्ताह से यहाँ गर्मी प्रारंभ हो जाती है। जो जुलाई अगस्त तक जारी रहती है। ऐसे समय में फ़ूस की छत एवं मिट्टी की दीवारें वाताकूलन का कार्य करती हैं।
सुंदरबन के साथी नबोरुन दत्ता, श्री दत्ता एवं राजुदास मानिकपुरी
घर के भीतर खाना बनाने के लिए चुल्हा, पकाने के चार बर्तनों के साथ चार-छ: बर्तन, बांस का मचान जैसा सोने का जुगाड़ एक नाव एवं मछली पकड़ने का जाल, यही इनकी कुल पूंजी है। फ़ारेस्ट एक्ट प्रभावी होने के कारण यहाँ बिजली नहीं है, बिजली की पूर्ति के लिए यहाँ सौर्य उर्जा का सहारा लिया जाता है। जिससे एक सीएफ़एल जला लेते हैं एवं मोबाईल इत्यादि चार्ज कर लिया जाता है। घरों के आस पास छोटे छोटे तालाब हैं, जिनमें बरसात का मीठा पानी जमा किया जाता है और उनमें मछली पालन किया जाता है। साथ निस्तारी के लिए इस जल का उपयोग किया जाता है। 
रात्रिकालीन आयोजन बाऊल नृत्यगान सभा
पशुओं की संख्या कम ही है, इसलिए गांव में दूध उपलब्ध नहीं हो पाता। बकरियों के अधिक यहाँ कुत्तों की संख्या दिखाई दी। इसको पालने का कारण भी यह है कि हिंसक जानवरों के गाँव की ओर आने की चेतावनी कुत्ते पहले ही दे देते हैं। जिससे ग्रामीण अपने जान माल की सुरक्षा का प्रबंध कर लेते हैं। नहीं तो क्या पता, सुंदरबन के छुट्टे आदमखोर बाघ कब किसका लिल्लाह पढवा दें और बॉडी भी न मिले। बाऊल नृत्य के पश्चत हम भोजन करके सोने चले गए। अगले दिन सुबह नौ बजे से हमें सफ़ारी पर जाना था। जारी है … आगे पढें…

नोट: यह यात्रा 26 जनवरी 2017 से 30 जनवरी 2017 के बीच की गई।

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

जिन्दगी भर नहीं भूलेगी पहाड़ों की मस्ती : बरसुड़ी गढ़वाल

आरम्भ से पढ़ें 
बरसुड़ी से हम द्वारीखाल की ओर चल रहे थे, पहाड़ों में पैदल चलना सामान्य सी बात है, पर हमारे लिए यह असामान्य हो रहा था। सैकिल चलाए ही तीस बरस बीत गए और पैदल चलने का मौका कभी कभी आता है, वरना वाहनारुढ़ ही रहते हैं। मैं धर्मवीर जी एवं किशोर हम तीनों एक साथ चल रहे थे, दिन ढल रहा था। 

पहाड़ों की साँझ 
किशोर की भी हमारे जैसी कहानी थी। कुल मिलाकर हम धीरे धीरे सरकते हुए चल रहे थे। अंतिम की चढाई खड़ी थी, जहाँ गाड़ी खड़ी, आखिरकार पहुंच ही गए, ड्रायवर जला भुना दिखाई दे रहा था, जिस पर बीनू भाई ने पहले पहुंचकर कुछ जलार्पण किया था। 
धीरे धीरे मंजिल की ओर  
हम द्वारी खाल पहुंच गए, नीरज, अजय एवं दीप्ति हमसे पहले पहुंच चुके थे। हमको दिल्ली जाना था। गुमखाल या कोटद्वार तक जाने के लिए कोई टैक्सी नहीं मिल रही थी। बीनू भाई टैक्सी के जुगाड़ में भटक रहे थे और इधर नीरज मेरा मन भटका रहा था, कह रहा था कि उनके साथ चलें हरिद्वार, कल आपको फ़्लाईट के टाईम तक दिल्ली पहुंचा देंगे।
प्रकृति का सौंदर्य 
मेरी मान्यता है कि जिस ग्रुप के साथ जाओ, उसी के साथ लौटो। पर बीनू भाई ने छूट दे दी। कहा कि मैं नीरज के साथ जा सकता हूँ। मेरा बैग भी कार में रखवा दिया और हम हरिद्वार की ओर चल पड़े और वे दिल्ली। रात साढे दस बजे हरिद्वा पहुंचे। यहाँ हमें पंकज शर्मा जी से मिलना था। उनका ठिकाना नीरज को पता था। हम ठिकाने पर पहुंचे, वहां पंकज जी के भ्रात अनंत शर्मा जी भी मिले। 
नीरज जाट एवं पंकज शर्मा 
ठंड के मौसम में बड़ी गर्मजोशी से भेंट हुई, होटल का कमरा खुलवा दिया गया। हमने सामान रखा और भोजन के लिए चल दिए। भोजन करने के पश्चात सोते हुए रात के एक बज गए। सुबह सात बजे हमें दिल्ली के लिए चलना था पर हम पौने आठ बजे चले।  अनंत शर्मा जी ने हर की पौड़ी का गंगा जल भेंट, मेरे लिए इससे बड़ी भेंट दुनिया में और कोई नहीं हो सकती। 
हरिद्वार में पंकज शर्मा एवं अनंत शर्मा बंधुओं के साथ 
हम सपाटे से दिल्ली की ओर चल पड़े, परन्तु ट्रैफ़िक में नाड़ी ठंडी हो गई। एक बजे हमने शाहदरा से मैट्रो पकड़ी, नीरज को ड्यूटी ज्वाईन करनी थी। दीप्ति कह रही थी खाना खाकर जाना, मुझे एक एक मिनट भारी हो रहा था, किसी तरह एयरपोर्ट पहुंच जाऊं वरना दिल्ली में ही रह जाऊंगा। आखिर दस मिनट में नीरज हाजरी लगाकर आ गया। 
चीलगाड़ी का सवार घर की ओर  
हम अजमेरीगेट, फ़िर नई दिल्ली गए मैट्रो से। नीरज मुझे नई दिल्ली मैट्रो में बैठाकर आया जो एयरोसिटी जाती। नई दिल्ली से एयरपोर्ट के स्पेशल मैट्रो चलती है। जो सत्रह मिनट में एयरोसिटी पहुंचा देती है। कार से हम दो घंटे में नहीं पहुंच सकते। आखिर मैं एयरपोर्ट पहुंच गया समय से। चेक इन करके आधे घंटे बाद हवाई जहाज में बैठकर अपने घर की उड़ चला बरसुड़ी की यादें लिए……

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

वीराने में सपनों सा घर और नयार नदी के साथ दिन रात : बरसुड़ी गढ़वाल

आरम्भ से पढ़ें
पहाड़ी ढलान पर थोड़ी सी जगह में बना हुआ घर, जहाँ पड़ोस ढूंढने के लिए भी दो किमी जाना पड़ता हो। चारों ओर प्रकृति की कृपा बरसती हो और तलहटी में नयार नदी बहती हो, ऐसी स्थान पर भीमदत्त कुकरैती जी का घर है। खड्ड में बहती नयार नदी एक स्थान पर जाकर गंगा में समाहित हो जाती है। 
सपनों के घर के नीचे बहती नयार नदी
घर के आस पास की क्यारियों में प्याज, मिर्च, सब्जियाँ, अदरक, फ़ल-फ़ूल एवं अनाज आदि जरुरत की सभी चीजें उगाई जाती हैं। बहुत कम सामान ही बाजार से खरीद कर लाना पड़ता है। गोबर खाद से उगी हुई फ़सल (जिसे आजकल आर्गेनिक कहा जाता है) का स्वाद ही अलग होता है और स्वास्थ्य के लिए लाभ प्रद भी होती है। 
अलाव जलाकर ठंड भगाते पथिक अजय सिंह, धर्मवीर जी, किशोर वैभव, नीरज जाट
सांझ हो रही थी, हल्की से हवा भी चलने लगी। पहाड़ों में इसे शीतलहर कहा जाता है। हल्की सी भी ठंडी हवा हाड़ कंपाने के लिए काफ़ी है। ठंड के  मौसम में दिन भी जल्दी ही छिप जाता है और संक्राति का काल भी था। ठंड से बचने के लिए छत पर ही अलाव जला लिया और यहीं सभी इकट्ठे होकर गपियाने लगे। तब तक चाची ने खाना भी बना दिया। गरम गरम रोटी दाल सब्जी के साथ सभी ने भोजन कर लिया और नौ बजे ही बिस्तर के हवाले हो गए। 
रात का भोजन एव प्रवचन
सुबह का सूर्योदय हुआ तो सामने खाल (दो पहाड़ों के बीच की खाई) में बहती नदी में कोहरा छाया हुआ था। धूप चमकीली थी, हम ऊषा सेवन के लिए छत पर ही बैठ गए। जंगल में घर होने के कारण यहाँ जंगली जानवरों की भी आमदरफ़्त होती रहती है। जिनमें तेंदुए एवं सांभर प्रमुख हैं। बंदरों की फ़ौज भी दिखाई देती है। इन्होंने दो कुत्ते पाल रखे हैं, जो जरा सी आहट पर ही किसी के होने की सूचना दे देते हैं और रात भर चौकीदारी करते हैं।
सुरक्षा में तैनात छोटा भैरव
पहाड़ की चढाई के कारण मेरे पैरों की हालत तो खस्ता थी और कहीं चलकर जाने का मन नहीं हो रहा था। नीरज, निशा, अजय, बीनु, धर्मवीर जी, वैभव आदि चाचा जी के निर्देशन में काकड़ (सांभर) देखने एवं उनकी फ़ोटो लेने चले गए। इस दौरान मैने गरम जल से स्नान कर नाश्ता भी कर लिया। ये सभी ग्यारह बजे तक लौट कर आए। तब तक रोटियां ठंडी हो चुकी थी। 
सुबह की धूप का आनंद लेते हुए
नीरज, निशा एवं अजय तीनों हरिद्वार जाना चाहते थे और हमें वापस दिल्ली लौटना था। समय कितनी जल्दी गुजर जाता है पता ही नहीं चलता। नदी से धुंध गायब हो चुकी थी और वह अब दिखाई देने लगी थी। मैं पहाड़ चढना नहीं चाहता था, सोच रहा था यहीं से नीचे उतर कर कोई गाड़ी लेकर गुमखाल तक पहुंच जाऊं। चढने के बजाय पहाड़ से उतरना मुझे सुविधाजनक लग रहा था, भले ही  यह खड़ी उतराई थी, परन्तु जोर लगाना नहीं पड़ता। 
पंडित भीमदत्त जी नए आलु के साग की तैयारी करते हुए
खैर सभी ने भोजन करके चलने का निर्णय लिया। भीमदत्त जी ने क्यारी से ताजा आलू खोदे और उनकी सब्जी बनाई गई। भात खाने का मन था इसलिए चावल भी पकाए गए। भोजन करने के बाद चाचा जी (भीमदत्त जी) ने सबको परम्परागत तरीके से पुन: पधारने आमंत्रण के साथ विदा किया। 
दोपहर का भोजन एवं वापसी की तैयारी
अब हमको पुन उसी रास्ते से चलकर द्वारीखाल तक पहुंचना था। पहाड़ियों के लिए तो यह रोजमर्रा की जिन्दगी है, परन्तु हमारे जैसे मैदानी लोगों के कठिन काम है। आगे जाने के लिए चलना तो था ही, मन मार कर चल पड़े।
परम्परागत विदाई देते हुए पंडित भीमदत्त जी
चीड़ के जंगल के बीच टेढी मेढी पगडंडी हमें बरसुड़ी गाँव लेकर जा रही थी। पहाड़ी से नीचे उतरने के बाद गाँव पहुंचने के लिए खड़ी चढाई ने हालत खराब कर दी। आखिर गाँव में घर तक पहुंचे और बाकी सामान लिया। गाँव के प्रवेश द्वार तक चाचा जी छोड़ने आए।
रास्ते में आगे बढते हुए थोड़ा ठहराव
फ़ोटो खींचते, चिड़िया देखते हम आगे बढ गए। बीनू ने द्वारी खाल से गाड़ी बुला रखी थी। जो हमें आधे रस्ते से द्वारी खाल तक छोड़ती। गाड़ी को आए काफ़ी देर हो गई हो गई थी और ड्रायवर फ़ोन की घंटी पे घंटी बजाए जा रहा था…… जारी है, आगे पढें।