शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

लोकपर्व गणगौर एवं निमाड़ का नृत्य

राजस्थान, मालवा, निमाड़, हरियाणा में होली के बाद मनाया जाने वाला प्रमुख लोकपर्व गणगौर है। जयपुर में मनाए जाने वाले गणगौर की झांकियाँ प्रसिद्ध है। यह चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है | इस दिन कुवांरी लड़कियां एवं विवाहित महिलायें शिवजी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं | पूजा करते हुए दूब से पानी के छांटे देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं।
ईस्सर जी 
राजस्थानी में कहावत भी है तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर। अर्थ है की सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम आ जाता है। यह त्यौहारों का अंतिम सत्र होता है, इसके बाद सीधे सावन की तीज आती है और त्यौहारों का पुन; आरंभ होता है। 
गोरजा 
पौराणिक आख्यान के अनुसार पार्वती ने शंकर भगवान को पति ( वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें वर रूप में पाने की इच्छा जाहिर की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और उनसे शादी हो गयी। बस उसी दिन से कुंवारी लड़कियां मनवांछित वर पाने के लिए ईसर और गौरा की पूजा करती है। सुहागिन स्त्री पती की लम्बी आयु के लिए पूजा करती है। लड़कियाँ सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बाड़ी बगीचे में जाती है दूब व फूल लेकर आती है। दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती है। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदी सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है तथा चांदी के छल्ले से गणगौर को पानी पिलाया जाता है। 
निमाड़ का गणगौर नृत्य 
आठ वे दिन ईसर जी पत्नी (गणगौर ) के साथ अपनी ससुराल पधारते है। उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती है और वहा से मिट्टी की झाँवली ( बरतन) और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है। उस मिट्टी से ईसर जी, गणगौर माता, मालन,आदि की छोटी छोटी मूर्तिया बनाती है। जहा पूजा की जाती उस स्थान को गणगौर का पीहर व जहाँ विसर्जित की जाती है वह स्थान ससुराल माना जाता है |
गणगौर नृत्य की लोक कलाकार 
गणगौर माता की पूरे राजस्थान में पूजा की जाती है। चैत्र मास की तीज सुदी को गणगौर माता को चूरमे का भोग लगाया जाता है। दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है। यानी की विसर्जित किया जाता है । विसर्जन का स्थान गाँव का कुआ ,जोहड़ तालाब होता है। कुछ स्त्रियाँ जो शादी शुदा होती है वो अगर इस व्रत की पालना करने से निवर्ती होना चाहती है वो इसका उजणा (उधापन) करती है जिसमें सोलह सुहागन स्त्री को समस्त सोलह श्रृंगार की वस्तुएं देकर भोजन करवाती है।  
लोक कलाकार महाजन निमाड़ 
गणगौर माता की पूरे राजस्थान में जगह जगह सवारी निकाली जाती है जिस मे ईशर दास जीव गणगौर माता की आदम कद मूर्तीया होती है। जयपुर, उदयपुर की धींगा गणगौर, बीकानेर की चांद मल डढ्डा की गणगौर, प्रसिद्ध है। गणगौर राजस्थान में आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है। गण (शिव) तथा गौर(पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।

निमाड़ अंचल में गणगौर नृत्य की परम्परा भी है। गणगौर पूजन में कन्यायें और महिलायें अपने लिए अखंड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से हर वर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं।

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